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परकाला प्रभाकर की लिखित पुस्तक ‘नए भारत की दीमक लगी शहतीरें: संकटग्रस्त गणराज्य पर आलेख’ भारतीय लोकतंत्र के वर्तमान संकट पर एक गहन और चिंतनशील विश्लेषण प्रस्तुत करती है. मूल रूप से यह पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गई थी, जिसे वर्ष 2023 में स्पीकिंग टाइगर ने प्रकाशित किया था.राजकमल प्रकाशन
प्रभाकर के अनुसार, यह परिवर्तन न केवल राजनीतिक परिदृश्य में, बल्कि समाज की संरचना और सोच में भी होना चाहिए, ताकि लोकतंत्र के मूल्यों को संरक्षित और सुदृढ़ किया जा सके! प्रभाकर इस बात पर भी जोर देते हैं कि अब निष्क्रियता या मौन रहना विकल्प नहीं है, क्योंकि हिंदुत्व की परियोजना और अवसरवाद लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं. वह चेतावनी के स्वर में कहते हैं कि यदि इन खतरों का समय रहते मुकाबला नहीं किया गया, तो भविष्य में अराजकता और विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
इस संदर्भ में, प्रभाकर ने मीडिया की निष्पक्षता, जनता के प्रति उसकी जवाबदेही और उसके सच्चे कर्तव्यों पर गंभीर सवाल उठाए हैं. उनका दृष्टिकोण पाठक को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आज का मीडिया वाकई लोकतंत्र के हित में कार्य कर रहा है या फिर वह केवल सत्ता के एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक साधन बन गया है? हम पढ़ते हुए अनुभव करते हैं कि कैसे पुस्तक पाठकों को सोचने पर विवश करती है, उन्हें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति भी सचेत करती है. साथ ही एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण की दिशा में प्रेरित करती है, जहां लोकतंत्र की जड़ें न केवल मजबूत हों, बल्कि वे सभी के लिए न्याय, समानता और स्वतंत्रता की गारंटी भी दें.पुस्तक का सबसे लंबा और गंभीर अध्याय भारत की कोविड-19 महामारी की प्रतिक्रिया से संबंधित है.
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