महाकुंभ 2025 के दौरान नागा साधुओं के अंतिम संस्कार की विशेषताओं को जानिए.
महाकुंभ 2025 शरू होने में बस कुछ ही दिन बचे हैं. इस बार 13 जनवरी 2025 से प्रयागराज में महाकुंभ प्रारंभ होने जा रहा है. यहां हर अखाड़े के साधु संत आएंगे. नागा साधुओं को महाकुंभ के दौरान विशेष स्थान दिया जाता है. वो जीवन-मरण और लोक माया से कहीं दूर रहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नागा साधुओं का अंतिम संस्कार भी अनोखा होता है. हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के समय मृत शरीर को अग्नि दी जाती है लेकिन नागा साधुओं का मानना है कि अग्नि संस्कार से आत्मा को पूर्ण मुक्ति नहीं मिलती.
अग्नि का कार्य शरीर को भौतिक रूप से समाप्त करना है लेकिन भू-समाधि आत्मा को स्थायित्व और शांति प्रदान करती है. नागा साधु भगवान शिव के भक्त होते हैं. शिव स्वयं समाधि अवस्था के देवता हैं. नागा साधु पृथ्वी को माता मानते हैं. उनका विश्वास है कि धरती में समाधि लेने से उनका शरीर प्रकृति के पांच तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश में विलीन हो जाता है. भू-समाधि उनकी परंपरा का पालन है. भू-समाधि के माध्यम से यह माना जाता है कि साधु मृत्यु के बाद भी ध्यान और साधना की अवस्था में रहते हैं. भू-समाधि में शरीर को धरती में विलीन कर दिया जाता है, जिससे साधु का जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है और आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है. नागा साधु की मृत्यु के बाद उनके शरीर को सिद्धासन में बिठाया जाता है. सिद्धासन एक योग मुद्रा है जिसमें व्यक्ति के दोनों पैर जंघाओं पर टिके होते हैं. यह मुद्रा ध्यान और मोक्ष का प्रतीक है. इस आसन में बैठाने का उद्देश्य आत्मा को ध्यानावस्था में ले जाना और शरीर को संतुलन देना है. भू-समाधि की तैयारी के समय सबसे पहले समाधि स्थल को चुना जाता है जो किसी शांत और पवित्र स्थान पर हो. वहां एक गड्ढा या समाधि स्थल तैयार किया जाता है जो उस नागा साधु के शरीर को पूर्णतः ढकने लायक हो. इस स्थान को गंगाजल, गोमूत्र, और अन्य पवित्र वस्तुओं से शुद्ध किया जाता है. नागा साधु के शरीर को साधु वस्त्र या भगवा वस्त्र पहनाए जाते हैं. उनके शरीर पर भस्म (राख) का लेप लगाया जाता है, जो उनकी साधना का प्रतीक है
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