सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत की है.
खास बात यह है कि गुरुवार को उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में लिखे गए एक पत्र का जिक्र किया.Sana Makbul Khan: 'बिग बॉस ओटीटी 3' के टॉप 5 में पहुंची सना मकबूल, कभी कुत्ते ने काट लिया था होंठ; अब इसी स्माइल के साथ टॉफी जितने को तैयार
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खास बात यह है कि गुरुवार को उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में लिखे गए एक पत्र का जिक्र किया. इस लेटर में नेहरू ने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था. न्यायमूर्ति मिथल ने कहा, ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 27 जून 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित अपने पत्र में किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था. उन्होंने कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार है लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में.
नेहरू ने अपने पत्र में कहा था, ‘मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने. जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं.’ उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा का अवसर देना है. इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है. बाकी सबकुछ एक तरह की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है.
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