पड़ोसी देशों में बदलती सरकारों का भारत की विदेश नीति पर क्या असर?

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भारत के कई पड़ोसी देशों में सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसी सरकारें आई हैं जिनका भारत के प्रति रवैया उतना दोस्ताना नहीं है जितना कभी हुआ करता था.

बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख महोम्मद यूनुस, श्रीलंका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति दिसानायके और मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू.बांग्लादेश सरकार के चीफ़ एडवाइज़र मोहम्मद यूनुस न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली के सेशन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मिले हैं.

पिछले हफ़्ते श्रीलंका ने वामपंथी झुकाव वाले अनुरा दिसानायके को राष्ट्रपति चुना. साल 2023 में नेपाल, 2021 में म्यांमार, 2023 में मालदीव और 2021 में अफ़ग़ानिस्तान में भी सत्ता परिवर्तन हुआ है.साल 2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद उनकी सरकार ने 'नेबरहुड फ़र्स्ट' पॉलिसी शुरू की थी. इस नीति का उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाना था.

लेकिन साल 2024 में ओली एक बार फिर नेपाल के पीएम चुने गए हैं और अब दोनों देशों के बीच संबंध धीरे-धीरे पटरी पर आ रहे हैं. लेकिन जब हसीना के ख़िलाफ़ बांग्लादेश में प्रदर्शन शुरू हुए तो वहां के लोगों ने भारत को शक की नज़र से देखना शुरू कर दिया. सुहासिनी हैदर का कहना है, “भारत को इस मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए कि पड़ोसी देशों की सरकारें उसकी विदेश नीति से हमेशा सहमत ही होंगी. भारत अपने पड़ोसियों पर अपनी विदेश नीति नहीं थोप सकता. सरकार लगातार बदल रहे पड़ोस से यही सबक सीख रहा है.”

उन्होंने कहा, "यह एक बड़ा संकेत है कि नेबरहुड फ़र्स्ट पॉलिसी अब विकसित और परिपक्व हो गई है. पिछले कुछ वर्षों में इसका इम्तिहान हुआ है और ये उस परीक्षा पर खरी उतरी है.”शुरुआती तल्ख़ी के बाद मालदीव सरकार ने भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की पहल की है. स्वर्ण सिंह कहते हैं कि अमेरिका के तो बस दो ही बड़े पड़ोसी हैं - मेक्सिको और कनाडा. लेकिन भारत पाकिस्तान के अलावा भी कई छोटे-छोटे देशों से घिरा हुआ है.

विशेषज्ञों का कहना है कि इन दोनों देशों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए इन सभी देशों को जो संतुलन बनाना चाहिए, वह अक्सर उन्हें कर्ज़े, भोजन और पानी जैसे बुनियादी संसाधनों की कमी, जैसी मुसीबत भरे हालात में धकेलता है.भारत अपने किसी पड़ोसी देश के घरेलू बदलाव को प्रभावित नहीं कर सकता लेकिन बांग्लादेश जैसे कुछ मामलों में भारत ने दूरदर्शिता की कमी भी दिखाई है.

सुहासिनी हैदर के मुताबिक “बांग्लादेश में भारत सिर्फ़ एक पक्ष के संपर्क में रहा और उसने देश के भीतर विपक्ष को नज़रअंदाज़ किया. अब भारत इसी ग़लती की क़ीमत अदा कर रहा है.”

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