पनामा के राष्ट्रपति ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से बाहर होने का फैसला किया है. यह फैसला भारत सरकार के दबाव के बाद आया है. पनामा नहर एक महत्वपूर्ण ट्रेड रूट है और चीन की बढ़ती उपस्थिति से अमेरिका और पनामा दोनों चिंतित हैं.
डोनाल्ड ट्रंप के बार-बार पनामा नहर पर अमेरिकी कंट्रोल बहाल करने की धमकी देने के बाद पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने बड़ा फैसला लिया है. उन्होंने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से बाहर होने का निर्णय लिया है. पनामा नहर एक महत्वपूर्ण ट्रेड रूट है. राष्ट्रपति मुलिनो ने कहा कि पनामा चीन के साथ अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव समझौते को नवीनीकृत नहीं करेगा. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि अगर संभव हुआ तो इसे समय से पहले ही समाप्त कर दिया जाएगा.
इस फैसले के साथ पनामा बीआरआई छोड़ने वाला पहला लैटिन अमेरिकी देश भी बन गया है. चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव एक वैश्विक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है, जो विकासशील देशों में बुनियादी ढांचे का निर्माण करने के लिए धन देती है. हालाँकि, आलोचकों का कहना है कि BRI गरीब देशों को चीन पर आर्थिक रूप से निर्भर कर देता है और उन्हें भारी कर्ज में डाल देता है. अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पनामा दौरे के दौरान राष्ट्रपति मुलिनो से मुलाकात की और उनसे चीन के प्रभाव को तुरंत कम करने को कहा. रुबियो ने चेतावनी दी कि अगर पनामा ऐसा नहीं करता है तो अमेरिका कड़ी प्रतिक्रिया दे सकता है. रुबियो ने अपनी पहली विदेश यात्रा के दौरान पनामा नहर का निरीक्षण किया. उन्होंने इस दौरान कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि पनामा नहर पर चीन की मौजूदगी 1999 के समझौते का उल्लंघन हो सकता है. इस समझौते के तहत अमेरिका ने पनामा को नहर सौंप दी थी, लेकिन इसकी स्थायी निष्पक्षता बनाए रखने का वादा किया गया था.हालांकि, मुलिनो ने अमेरिकी सरकार के दबाव को खारिज कर दिया और कहा कि पनामा अपनी व्यापारिक संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा. मुलिनो ने रुबियो से मुलाकात के बाद कहा कि 'कोई धमकी नहीं दी गई, न ही बल प्रयोग की बात हुई.' पनामा नहर को अमेरिका ने 1914 में बनाया था और 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने इसे पनामा को सौंप दिया था. लेकिन, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पद संभालने के तुरंत बाद आरोप लगाया कि पनामा नहर पर चीन का कंट्रोल है. ट्रंप ने कहा, 'चीन पनामा नहर चला रहा है. यह चीन को नहीं दिया गया था. लेकिन उन्होंने समझौते का उल्लंघन किया और हम इसे वापस लेंगे या फिर कुछ बड़ा होने वाला है.' अमेरिका और पनामा के बीच 1977 में हुए समझौते पर अब सवाल उठ रहे हैं, जिससे यह मुद्दा और ज्यादा संवेदनशील हो गया है
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