मध्य प्रदेश के पन्ना में हज़ारों लोग अपने-अपने घरों से रोज़ हीरे की तलाश में निकल पड़ते हैं. कई ऐसे परिवार भी हैं, जो पीढ़ियों से हीरों की खोज में लगे हुए हैं. हीरा मिलने के बाद भी एक नया संघर्ष शुरू होता है.
स्वामीदीन पाल के घर पर ख़ुशियों का माहौल है. उनकी और उनके बेटे की सालों की मेहनत रंग लाई है.पाल परिवार को उम्मीद है कि इससे उन्हें डेढ़ करोड़ रुपए तक मिल सकते हैं.
हीरे की तलाश में जुटे स्वामीदीन जैसे हज़ारों लोग हैं, जो भारत के कोने-कोने से मध्य प्रदेश के इस छोटे से शहर पन्ना में आकर अपनी किस्मत आज़माते हैं.पीढ़ियों से हीरों की खोजके अनुसार, पन्ना में देश के 90 प्रतिशत से अधिक हीरे के भंडार हैं, जिनकी मात्रा 28.597 मिलियन कैरट है. अब से ठीक 50 साल पहले उन्हें पहली बार हीरा मिला था. पुराने दिन याद करते हुए वो कहते हैं, “मैंने 1974 में अपनी उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी की थी. उन दिनों में किसी भी विभाग में एक अच्छी नौकरी मिल सकती थी, लेकिन मेरा मन कुछ और ही सोच चुका था. इंटर पास करने के कुछ वक़्त पहले मुझे पहला हीरा मिला था जो लगभग छह कैरट का था और तभी मैंने फैसला किया कि मैं हीरे ही खोजूंगा.”
वो कहते हैं, "मैंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा, जिसमें लोगों से पन्ना आकर किस्मत आज़माने की बात की गई थी. मैंने अपना सामान बांधा और आ गया. लेकिन अब तक मेरी किस्मत खुली नहीं है."वो कहते हैं, “हमारे यहाँ रूंज नदी है, जिसमें बहुत हीरे मिलते हैं. उसमे हीरे खोजता हूँ. बरसात के दिनों में यहाँ हीरे मिलते हैं. हालांकि अब तक मुझे नहीं मिले हैं लेकिन हीरों के लालच में ही मैं यहाँ आता हूँ.”वो कहते हैं, “बारिश के दिनों में मैं हीरा खोजता हूँ और बाक़ी टाइम सब्ज़ी बेचता हूँ.
हीरे की नीलामी से होने वाली कुल आय का 12.5 प्रतिशत भारत सरकार रखती है और बाक़ी राशि हीरा खनिक यानी हीरा पाने वाले के खाते में जमा कर देती है.हीरों की खोज के दौरान कंकड़ों की धुलाई करते ये श्रमिक अपनी किस्मत आजमाने के लिए रोज सुबह 4 बजे से खदान में काम करते हैंलेकिन ऊपर दी गई प्रक्रिया कहानी का एक पहलू है. इससे अलग रोज़ाना पन्ना में हज़ारों लोग बिना पट्टे की सरकारी ज़मीन पर आपको हीरे की तलाश करते दिख जाएंगे.अधिकांश खनिकों को हीरा खनन में कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं मिला है.
इनमें से ज़्यादातर लोगों ने कहा कि अगर क़ानूनी तरीक़े से किसी को हीरा मिलता है और वो उसका मूल्यांकन कराने के लिए सरकारी जौहरी के पास जाता है तो ये बात कई बार उसके लिए नुक़सानदेह साबित हो सकती है क्योंकि इससे अपराधियों के उन तक पहुंचने का ख़तरा पैदा हो जाता है.हीरों की अवैध ख़रीदो-फ़रोख़्त में जुटे एक स्थानीय शख़्स ने कहा, “पन्ना में पाए गए हीरों का केवल 10-15% ही हीरा कार्यालय तक पहुँचता है, बाकी हीरे निजी रूप से बेचे जाते हैं.
वहीं हीरों की कालाबाज़ारी के आरोप पर रवि पटेल कहते हैं, "जब भी हमें हीरों की कालाबाज़ारी के बारे में जानकारी मिलती है तो हम कार्रवाई करते हैं. लेकिन तथ्य ये है कि हीरा इतना छोटा होता है कि चाहे आप कितनी भी कोशिश करें, कुछ न कुछ आपके हाथ से फिसल ही जाता है. हमारी कोशिशें लोगों में ये जागरूकता फैलाने पर केंद्रित हैं कि वे काला बाज़ारी में शामिल न हों."
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