पवार परिवार में मेलमिलाप के लिए सुप्रिया सुले का एक शर्त

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पवार परिवार में मेलमिलाप के लिए सुप्रिया सुले का एक शर्त
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शरद पवार और अजित पवार के बीच मेलमिलाप की चर्चाओं के बीच सुप्रिया सुले ने एक ऐसी शर्त रख दी है जिससे अजित सहमत नहीं हैं। सुप्रिया चाहती हैं कि एनसीपी बीजेपी से अलग होकर विपक्ष की राजनीति करें।

मुंबई: महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले एक महीने से शरद पवार और अजित पवार के मेलमिलाप की चर्चा चल रही है। सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि शरद पवार भी भतीजे अजित के साथ पैचअप के मूड में हैं। उन्होंने इस एकजुटता के लिए अपना फॉर्मूला भी तैयार किया, जिसमें दिल्ली में नेतृत्व सुप्रिया सुले को करने का प्रस्ताव था। अजित पवार महाराष्ट्र में पार्टी सर्वेसर्वा होते। मगर यह प्रस्ताव अधर में लटक गया है। सूत्रों के मुताबिक, बारामती की सांसद सुप्रिया सुले ने एक ऐसी शर्त रख दी है, जिससे अजित सहमत नहीं हैं।

सुप्रिया चाहती हैं कि एनसीपी बीजेपी से अलग होकर विपक्ष की राजनीति करें। अपना स्टैंड साफ कर चुकी हैं सुले यह पहली बार नहीं है कि जब सुप्रिया सुले अपना यह स्टैंड रखा है। नवंबर, 2024 में खुले तौर पर सुप्रिया सुले ने कहा था कि हम कांग्रेस के साथ हैं और वे भाजपा के साथ। हम बीजेपी से लड़ रहे हैं, इसलिए हम उनके सहयोगियों से भी लड़ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो सुप्रिया अपने स्टैंड पर बरकरार हैं। पिछले दिनों एकदम से यह चर्चा सामने आई थी कि शरद गुट के सांसद पाला बदल सकते हैं। सुप्रिया केंद्र में मंत्री बन सकती हैं। महाराष्ट्र अजित पवार और शरद पवार ने जनवरी महीने में दो बार मंच साझा किया पहली बार बारामती और फिर पुणे में। इसके बाद अटकलें लगी थीं कि पवार परिवार क्या एक हो जाएगा? क्या चाचा और भतीजे के बीच दूरियां घट रही हैं? बीजेपी के विरोध में रहे हैं पवार? महाराष्ट्र में एनसीपी की पॉलिटिक्स को काफी करीब से देखते वाले एक जानकार कहते हैं कि सुप्रिया सुले की राजनीति और उनका स्टैंड बीजेपी के खिलाफ है। यही वजह है कि 2017 में कभी भी यह कोशिश परवान नहीं चढ़ी कि शरद पवार बीजेपी के नजदीक जा पाएं। पिछले दिनों शरद पवार ने जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के तड़ीपार होने का जिक्र करके हमला बोला था। तब उन्होंने अपनी जनसंघ और आरएसएस से निकटता दिखाने की कोशिश की थी, लेकिन शरद पवार की पूरी राजनीति को देखा जाए तो दो साल को छोड़कर वह अधिकतर समय बीजेपी के खिलाफ रहे हैं। उनकी सरकार में 1978 से 1980 के बीच जनसंघ और आरएसएस की पृष्णभूमि के लोग साथ रहे थे। आसान नहीं है एक होने की राह महाराष्ट्र के वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दयानंन नेने कहते हैं कि जहां तक मेरी समझ है कि शरद पवार बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे। वर्तमान में जो राजनीतिक हालात हैं उसमें अजित का बीजेपी से दूर होना संभव नहीं है। ऐसे में निकट भविष्य में कोई एकजुटता की संभावना दिखाई नहीं दे रही है। नेने कहते हैं कि परिवार के तौर पर मेलमिलाप तो ठीक हैं लेकिन उन कार्यकर्ताओं का क्या होगा? जिन्होंने एनसीपी के दो फाड़ होने पर एक-दूसरे से बुराई ली। नेने कहते हैं कि सुप्रिया सुले की अलग राजनीति है। वे भी नहीं चाहेंगी कि उनके पिता उम्र के इस पड़ाव में बीजेपी के निकट जाएं। नहीं आया है कोई बदलाव सूत्रों की कहना है कि अजित पवार महायुति की प्रचंड जीत के बाद फिर डिप्टी सीएम बन चुके हैं लेकिन सुप्रिया सुले जो बारामती से चौथी बार चुनाव जीतकर लोकसभा की सांसद हैं। उनके रुख में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है। वे उसी स्टैंड पर कायम हैं कि जब तक अजित पवार बीजेपी के साथ हैं तब वैचारिक तौर उनके साथ जाना या फिर आना संभव नहीं है। संसद में सर्वश्रेष्ठ सदस्य चुनीं जा चुकीं सुले कहती आई है कि हम लोगों की सेवा करने और अच्छी नीतियों को लागू करने के लिए चुनाव लड़ते हैं। हमारी शुरू से मांग रही है कि सरकार महंगाई और बेरोजगारी पर ध्यान दे

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