आईएसआई को पाकिस्तान में सेना का बड़ा समर्थन हासिल है लेकिन इसे कई बार आलोचना का भी सामना करना पड़ता है.
इमेज कैप्शन,पाकिस्तान के सरकारी मीडिया के अनुसार एडजुडेंट जनरल के पद पर काम करने वाले लेफ़्टिनेंट जनरल मोहम्मद आसिम मलिक को पाकिस्तान सेना की ख़ुफ़िया संस्था आईएसआई का नया प्रमुख बनाया गया है.
ऐसा कम ही हुआ है कि अपने किसी ऑपरेशन के मामले पर आईएसआई के किसी अधिकारी ने इस तरह सीधे विदेशी पत्रकारों को ब्रीफ़िंग दी हो. लेकिन यह घटना भी असामान्य थी जिसने आईएसआई के बारे में एक बार फिर बहस छेड़ दी. इस कार्रवाई के बाद आईएसआई ने एक तरफ़ पाकिस्तान के अंदर अमेरिकी सीआईए और एफ़बीआई के साथ मिलकर साझा ऑपरेशन किया, जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान के अंदर धार्मिक लॉबी के साथ क़रीबी संबंध भी बनाये रखा.
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान और अमेरिका में इंटेलिजेंस सहयोग समझौते पर कामयाबी से अमल उस समय हुआ जब दोनों देश पाकिस्तान के नागरिक ठिकानों में अलक़ायदा से संबंध रखने वाले लोगों का पीछा कर रहे थे. व्यावहारिक स्तर पर अमेरिकी सेना पाकिस्तानी अधिकारियों के दृष्टिकोण से सहमत नहीं थी. इस बात का संकेत पाकिस्तान के कथित ‘दोहरे मापदंड’ की नीति की अमेरिकी आलोचना से मिलता है.
इस संस्था के बारे में ऐसा क्या है कि पाकिस्तान के अंदर और बाहर उसकी आलोचना होती है? ऐसा क्यों है कि राजनीतिक पृष्ठभूमि में किसी भी अपहरण, हत्या या धमकी का आरोप आईएसआई पर लगाया जाता है? उसी समय पाकिस्तान वॉशिंगटन में अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर ध्यान दिलाने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत कर रहा था.नवाज शरीफ ने जनरल मुशर्रफ की जगह उस समय आईएसआई के प्रमुख जनरल जियाउद्दीन बट को नया सेना प्रमुख बनाने की कोशिश की थी
जर्मन राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर हीन एच किसलिंग ने अपनी किताब ‘आईएसआई ऑफ़ पाकिस्तान’ में इस संस्था का संगठनात्मक ढांचा दिया है. इस पुस्तक के मुताबिक़ उन्होंने साल 1989 से साल 2002 का समय पाकिस्तान में गुज़ारा है. एक सीनियर फ़ौजी अफ़सर ने बीबीसी को बताया कि सशस्त्र सेनाओं में आर्मी, एयर फ़ोर्स और नेवी में एक अलग इंटेलिजेंस एजेंसी होती है, जिसमें मिलिट्री इंटेलीजेंस, एयर इंटेलीजेंस और नेवल इंटेलिजेंस शामिल हैं जो अपनी-अपनी संबंधित सेना के लिए ज़रूरी जानकारी इकट्ठा करती और कार्रवाई करती हैं.
लेकिन वॉशिंगटन स्थित फ़ेडरेशन ऑफ़ अमेरिकन साइंटिस्ट्स की कई साल पहले की जाने वाली पड़ताल के अनुसार आईएसआई में 10 हज़ार अधिकारी और स्टाफ़ मेंबर हैं जिनमें मुख़बिर और सूचना देने वाले लोग शामिल नहीं हैं. सूचना के अनुसार इसमें 6 से 8 डिवीज़न हैं.
"वो यह समझते थे कि अमेरिकी मदद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेगी और सेना की क्षमता को बढ़ाएगी. लेकिन दूसरी ओर अमेरिका के साथ इंटेलिजेंस शेयरिंग के लिए ज़्यादा जानकारी और पाकिस्तान के अंदर निगरानी की ज़रूरत होगी जिससे पाकिस्तान की राष्ट्रीय ख़ुफ़िया जानकारी सुरक्षित रखने में मुश्किल आ सकती थी." सैनिक सुधारों की व्याख्या से संबंधित डिक्शनरी में 'काउंटर इंटेलिजेंस' का मतलब बताया गया है- "काउंटर इंटेलिजेंस जानकारी हासिल करने और विदेशी सरकारों, विदेशी संगठनों, विदेशी लोगों या अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों या उनके इशारे पर की जाने वाली जासूसी."
फ़िरोज़ ख़ान ने लिखा है, "ज़िया उल हक़ के पास आगे बढ़ने के रास्ते बहुत कम थे लेकिन उन्हें दांव लगाना था. परमाणु मामले को कूटनीति से कम किया जा सकता था और अमेरिकी इंटेलिजेंस के ज़रिए जानकारी लेने में ख़तरे थे, इस समस्या को बेहतर काउंटर इंटेलिजेंस से हल किया जा सकता था."आज तक आईएसआई के अंदर डायरेक्टोरेट्स या निदेशालय काउंटर इंटेलिजेंस की ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं जिसे जॉइंट काउंटर इंटेलिजेंस ब्यूरो या जेसीआईबी का नाम दिया गया है जो सबसे बड़ा डायरेक्टोरेट है.
इसका काम राजनीतिक गतिविधियों का हिसाब रखना भी है और यह पाकिस्तान के सभी बड़े शहरों क्षेत्रों में मौजूद है."डॉक्टर हीन किसलिंग की किताब के अनुसार आईएसआई का दूसरा बड़ा डायरेक्टोरेट ज्वाइंट इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी जेआईबी है जो संवेदनशील राजनीतिक विषयों से संबंधित है. डॉक्टर किसलिंग के मुताबिक़ ज्वाइंट इंटेलिजेंस यूरोप अलग-अलग देशों , अमेरिका, एशिया और मध्य पूर्व में जासूसी का काम करता है और एजेंट के ज़रिए आईएसआई हेडक्वार्टर से सीधे संपर्क में रहता है.
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