पिताजी के हस्ताक्षर से प्रारंभ हुई कविता यात्रा

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पिताजी के हस्ताक्षर से प्रारंभ हुई कविता यात्रा
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एक व्यक्ति की कविता यात्रा का वर्णन जो पिताजी के हस्ताक्षरों से प्रारंभ हुई और हिंदी साहित्य के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।

ये १९८८ सर्दियों की बात है जब मैंने भागलपुर के प्रतिष्ठित टीएनबी कॉलेज में स्नातक (अंग्रेजी) में दाखिला लिया था. क्लास के पाठ्यक्रम में भले ही शेक्सपियर, थॉमस हार्डी, पीबी शैली थे, मन में हिंदी साहित्य के प्रति समानांतर अनुराग पल रहा था. पर लोगों ने कहा, हिंदी पढ़ने से नौकरी नहीं मिलेगी और अंग्रेजी से कुछ न कुछ मिल ही जाएगा, तो चल पड़े अंग्रेजी पढ़ने. पिताजी अंग्रेजी के प्रख्यात शिक्षक थे तो हम चारों भाइयों को अंग्रेजी सहज लगती थी.

इन्हीं दिनों किसी मित्र ने रवीन्द्रनाथ टैगोर का अज्ञेय द्वारा अनूदित ‘गोरा’ पढ़ने को दिया. कोमल मन ऐसी प्रांजल भाषा पढ़कर भाव विभोर हो गया. लगा ही नहीं कि ये हिंदी अनुवाद है. इतनी मौलिक भाषा और सुंदर शब्द संयोजन! इसमें प्रेम का एक अलौकिक दृश्य है जब एक नाव में प्रेमी और प्रेमिका अकेले हैं, फिर भी दोनों के बीच कोई शारीरिक अंतरंगता नहीं है. किताब के समापन पर मैं संवेदनाओं में डूबा हुआ था. वहीं से मेरी पहली कविता उद्भूत हुई,कांता बोल उठी, प्रेम सिर्फ हृदय का अच्छवास नहीं है,अनजाने, अनकहे मेरी कच्ची-अधपक्की काव्य यात्रा शुरू हो गई. वो बड़ी वाली डायरी आज भी मेरे पास है जिसमें मैं कविताएं लिखता था. पिताजी को पता चल गया. मेरी आदत थी हर कविता को किसी न किसी को समर्पित करता था. पहली पिताजी को ही की- ‘पूज्यास्पद पितृदेव श्री संजय प्रसाद सिंह को’. पिता ने उस कविता पर हस्ताक्षर किए. आज जब वो नहीं हैं, वो लाल स्केच से किया हुआ आर्टवर्क की तरह वो ऑटोग्राफ मेरी अनमोल अमानत है. बहरहाल, पिता को लगा कि लड़का भटक रहा है. साहित्य का सिलसिला शुरू हो चुका था. हजारी प्रसाद द्विवेदी की सारी किताबें पढ़ गया. ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ ने बहुत प्रभावित किया. अमृत लाल नागर के ‘नाच्यो बहुत गोपाल’, हरिवंश राय बच्चन की ‘दशद्वार से सोपान तक’, जय शंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ और इसी तरह के क्लासिक पड़ने लगा. अंग्रेजी सिलेबस भी साथ चल रहा था. दोनों भाषाओं के साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन भी चलने लगा. एक और साहित्यकार जिसने अपनी भाषा से बहुत प्रभावित किया वो हैं राजा राधिका रमन प्रसाद सिंह.वर्धक्य के तेज धुंधलके मंथर मंथर पग थाप चुना,हो गया अंत महास्थिवर क

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