पितृ चालीसा: पौष अमावस्या पर पितरों की कृपा प्राप्ति के उपाय

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पितृ चालीसा: पौष अमावस्या पर पितरों की कृपा प्राप्ति के उपाय
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यह लेख पौष अमावस्या पर पितरों की आराधना और पितृ चालीसा के महत्व के बारे में बताता है।

धर्म डेस्क, नई दिल्ली। इस साल पौष माह की अमावस्या, सोमवार, 30 दिसंबर को मनाई जाएगी, जो साल 2024 की आखिरी अमावस्या (paush Amavasya 2024) भी होने वाली है। इस तिथि पर किए गए कुछ खास उपाय ों से आप अपने पितर ों की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में इस दिन पितृ चालीसा का पाठ भी जरूर करना चाहिए। तो चलिए पढ़ते हैं श्री पितृ चालीसा पितृ चालीसा । दोहा। हे पितर ेश्वर आपको दे दो आशीर्वाद, चरण शीश नवा दियो रख दो सिर पर हाथ। सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी। हे पितर ेश्वर दया राखियो,करियो मन की चाया

जी। चौपाई पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर । परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा । मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे । जै-जै-जै पितर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं । चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा । नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का । प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते । झुंझुनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे । प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा । पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी । तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे । नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी । छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते । तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी । भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे । ध्वज पताका मण्ड पे है साजे, अखण्ड ज्योति में आप विराजे । सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी, धन्य हुई जन्म भूमि हमारी । शहीद हमारे यहाँ पुजाते, मातृ भक्ति संदेश सुनाते । जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा, धर्म जाति का नहीं है नारा । अमावस्या तिथि पर खास उपायों द्वारा पितृ दोष से भी मुक्ति पाई जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि इस तिथि पर पिंडदान, तर्पण आदि करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही आप इस तिथि पर पितृ चालीसा का पाठ करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब पूजे पित्तर भाई । हिन्दू वंश वृक्ष है हमारा, जान से ज्यादा हमको प्यारा । गंगा ये मरुप्रदेश की, पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की । बन्धु छोड़ ना इनके चरणाँ, इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा । चौदस को जाग

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