337 टन जहरीले कचरे के निपटान से पीथमपुर के एक गांव में भय का माहौल है। लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
पीथमपुर की रामकी कंपनी से 200 मीटर दूर गांव में शनिवार की सुबह अमर उजाला की टीम पहुंची। मकसद था ये जानना कि 24 घंटे के हंगामे के बाद पीथमपुर का हाल कैसा है? पर जो तस्वीर सामने आई वो चौंका गई। गांव की गलियां सूनी थी। कुछ लोग परिवार के साथ मकानों की छत पर खड़े थे। वो देख रहे थे, उन 12 कंटेनर को, जो रामकी कंपनी में खड़े थे। इन कंटेनर को देखकर गांव वाले आपस में चर्चा भी कर रहे थे। ये नजारा देखकर अमर उजाला की टीम आगे बढ़ती है तो कुछ घरों की चौखट पर ताले नजर आते हैं। दरअसल ये बात चौंकाने वाली थी,
क्योंकि गांव की आबादी महज 1500 है। करीब 300 परिवार इस गांव में रहते हैं। आखिर इतनी कम आबादी के गांव से लोग अचानक कहां चले गए? इस बात की तफ्तीश अमर उजाला की टीम ने की। पता चला, 337 टन जहरीले कचरे को निपटान के लिए पीथमपुर की रामकी कंपनी में लाया गया है। इससे लोगों में डर का माहौल है। इसकी वजह से लोग गांव छोड़कर जा रहे हैं। जो परिवार यहां अभी रह रहे हैं, वे भी दूसरी जगह ठिकाना खोज रहे हैं। या फिर अपने गांव जाने की तैयारी में जुटे हैं। गांव वालों में डर की बड़ी वजह यह है कि साल 2008 में जो दस टन कचरा यहां दफनाया गया है। उसके कारण कई तरह की परेशानियां हो रही हैं। उसकी वजह से नदी का पानी काला पड़ चुका है। इस गांव में विनोद कुमार पांच साल से रह रहे हैं। वे मूलत: बिहार के रहने वाले हैं। उनका कहना है कि अक्सर परिवार में कोई न कोई बीमार रहता है। कमाई का बड़ा खर्च इलाज में चला जाता है। अब यहां 337 टन कचरा और आ गया है। हम जीने के लिए कमा रहे है। इस जहरीले कचरे के बीच तो रहना दुश्वार हो गया है, इसलिए परिवार को गांव भेज दिया है। वहीं दूसरी तरफ स्किन रोग से पीड़ित नंदकिशोर शाह का कहना है कि उनके पैर मेें दो बार चमड़ी से जुड़ी बीमारी हो चुकी है। यहां के पानी में खराबी हो चुकी है। पंद्रह साल पहले यहां सिर्फ कंपनी थी। बाद में यहां ट्रेंचिंग ग्राउंड भी बना दिया गया। यदि यहां कचरा जलाना है तो फिर तारापुर गांव को दूसरी जगह सरकार को बसाना चाहिए था। गांव वालों का कहना है कि जमीन के नीचे से बोरिंग से निकला पानी हम लोग पीते थे। पर अब वो भी पीने योग्य नहीं रह गया है। सरकार भले ही अलग-अलग जांचों में पानी के दूषित न होने का हवाला दे, लेकिन यहां के ग्रामीणों को उस पर विश्वास नहीं है। गांव वालों का दावा है क
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