पुणे में गुलियन-बैरे सिंड्रोम से खौफ, 26 मामले सामने आए

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पुणे में गुलियन-बैरे सिंड्रोम से खौफ, 26 मामले सामने आए
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पुणे में गुलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के 26 मामले सामने आने से स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप है. अधिकांश मामले शहर के सिंहगढ़ रोड इलाके से सामने आए हैं. राज्य स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी के मामलों में अचानक वृद्धि की जांच के लिए एक टीम गठित की है.

पुणे में गुलियन-बैरे सिंड्रोम ( जीबीएस ) ने पूरे शहर को खौफ में डाल दिया है, जिसके 26 मामले सामने आए हैं. शहर के तीन बड़े अस्पतालों ने GBS के बढ़ते मामलों के बारे में स्वास्थ्य अधिकारियों को सचेत किया है. डॉक्टरों ने मीडिया को बताया कि मरीज मुख्य रूप से सिंहगढ़ रोड , धायरी और आस-पास के इलाकों से हैं. 26 संदिग्ध मामले सामने आने के बाद महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी के मामलों में अचानक वृद्धि की जांच के लिए एक टीम गठित की है.

एक अधिकारी ने बताया कि पुणे नगर निगम (पीएमसी) के स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों के नमूने जांच के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (आईसीएमआर-एनआईवी) को भेजे हैं. नगर निगम के अधिकारियों ने बताया कि इनमें से अधिकतर मामले शहर के सिंहगढ़ रोड इलाके से सामने आए.चिकित्सकों के अनुसार, गुलियन-बैरे सिंड्रोम एक दुर्लभ विकार है, जिसमें अचानक सुन्नता और मांसपेशियों में कमजोरी हो जाती है. इसके साथ ही इस बीमारी में हाथ पैरों में गंभीर कमजोरी जैसे लक्षण भी होते हैं. गुलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल विकार है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से परिधीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है. इस स्थिति से कमज़ोरी, सुन्नता और गंभीर मामलों में पक्षाघात हो सकता है. हालाँकि GBS किसी को भी प्रभावित कर सकता है, लेकिन इसका सटीक कारण अज्ञात है.ठीक होने में लगने वाला समय अलग-अलग होता है, ज़्यादातर लोग कुछ हफ़्तों से लेकर महीनों में ठीक हो जाते हैं. लगभग 80% लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं, जबकि 15% में कमज़ोरी रह सकती है और 5% को गंभीर जटिलताओं का सामना करना पड़ता है.समय रहते इलाज ही इसका उपाय है.जीबीएस के लक्षण आमतौर पर अचानक दिखाई देते हैं और कुछ दिनों या हफ़्तों में तेज़ी से बढ़ सकते हैं. आम लक्षणों में कमज़ोरी और झुनझुनी शामिल है जो अक्सर पैरों से शुरू होती है और हाथों और चेहरे तक फैल सकती है. लोगों को चलने में भी कठिनाई होती है जो गतिशीलता और संतुलन को प्रभावित कर सकती है. यह न्यूरोपैथिक दर्द का भी कारण बनता है जो पीठ और अंगों में देखा जाता है. अनियमित हृदय गति, रक्तचाप में उतार-चढ़ाव और गंभीर मामलों में सांस लेने में कठिनाई. गंभीर अवस्‍था में जीबीएस कुल पक्षाघात का कारण बन सकता है, जिसके लिए वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है.डॉ. नीना बोराडे ने बताया कि शहर के छह अस्पतालों में जीबीएस के 26 संदिग्ध मामले सामने आए हैं. अधिकारियों ने बताया कि राज्य स्वास्थ्य विभाग ने पुणे शहर और आसपास के इलाकों में जीबीएस के मामलों में अचानक वृद्धि की जांच के लिए एक त्वरित प्रतिक्रिया टीम (आरआरटी) का गठन किया है.डॉ. बोराडे ने बताया कि जीवाणु और वायरल संक्रमण आम तौर पर जीबीएस का कारण बनते हैं क्योंकि वे रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर करते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘यह बच्चों और युवाओं दोनों आयु वर्ग को हो सकता है. हालांकि, जीबीएस महामारी या वैश्विक महामारी का कारण नहीं बनेगा. उपचार के जरिये अधिकांश लोग इस स्थिति से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं.’’ अधिकांश संदिग्ध मरीजों की उम्र 12 से 30 वर्ष की बीच है. हालांकि 59 वर्षीय एक मरीज का मामला भी सामने आया है

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