पौष पुत्रदा एकादशी, एक महत्वपूर्ण एकादशी व्रत है जो निसंतान दंपतियों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस व्रत के बारे में जानें, कब मनाई जाती है, महत्व और कथा.
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है। यह दिन पूर्णतया जगत के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होता है। इस दिन भक्ति भाव से लक्ष्मी नारायण जी की पूजा की जाती है। एक साल में 24 एकादशी मनाई जाती है। अधिकमास होने पर एकादशी की संख्या 26 होती है। इनमें पुत्रदा एकादशी , निर्जला एकादशी, इंदिरा एकादशी, देवशयनी एकादशी एवं देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस शुभ अवसर पर श्रीहरि नारायण जी की विधि विधान से पूजा भक्ति की जाती है। धार्मिक मत है कि एकादशी व्रत करने से साधक को
बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। साथ ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि कब और क्यों पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है और साल 2025 में कब पौष पुत्रदा एकादशी है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं- यह भी पढ़ें: साल 2025 में कब-कब है एकादशी? नोट करें सही डेट एवं पूरी लिस्ट कब मनाई जाएगी पुत्रदा एकादशी? विष्णु पुराण के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के अगले दिन पुत्रदा एकादशी मनाई जाती है। अगले साल यानी 2025 में 10 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी। इस व्रत को करने से निसंतान दंपति एवं नवविवाहित साधकों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पौष पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त वैदिक पंचांग के अनुसार, पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 09 जनवरी को दोपहर 12 बजकर 22 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, पौष पुत्रदा एकादशी तिथि का समापन 10 जनवरी को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में सूर्य उगने के बाद से तिथि की गणना की जाती है। इसके लिए 10 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी। साधक स्थानीय यानी लोकल पंडित जी से पंचांग दिखाकर भी सही डेट जान सकते हैं। साधक स्थानीय पंचांग के अनुसार व्रत रख सकते हैं। पौष पुत्रदा एकादशी की कथा सनातन शास्त्रों में वर्णित है कि राजा सुकेतुमान को कोई संतान नहीं थी। इसके लिए राजा सुकेतुमान और रानी शैब्या दुखी रहते थे। उन्हें यह दुख सता रहा था कि मृत्यु उपरांत उनके पूर्वजों का उद्धार कौन करेगा? कौन उनके पूर्वजों को मोक्ष दिलाएगा। उत्तराधिकारी न होने के चलते उनके पूर्वजों को दर-दर भटकना पड़ेगा। उनकी आत्माओं को न शांति मिलेगी और न ही मोक्ष की प्राप्ति होगी। यह सब सोच राजा सुकेतुमान राजपाट त्याग कर वन में चले गए थे। वहाँ उन्होंने एक ब्रह्मचारी से पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व जानकर उसका पालन किया
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