महाकुंभ 2025 के आगाज के साथ प्रयागराज को तीर्थराज का दर्जा दिया गया है. यह लेख प्रयागराज के महत्व, भारद्वाज आश्रम, नागवासुकि मंदिर और प्रथम यज्ञ के बारे में बताता है.
महाकुंभ 2025 का आगाज 13 जनवरी से हो रहा है. 45 दिनों तक चलने वाले महाकुंभ में 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु संगम नगरी आएंगे. महाकुंभ का आयोजन सिर्फ प्रयागराज में ही किया जाता है. प्रयागराज को तीर्थों को राजा कहा जाता है.दरअसल, प्रयागराज में भारद्वाज आश्रम है. भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के साथ भारद्वाज आश्रम गए थे. यहीं से भारद्वाज मुनि ने उन्हें चित्रकूट जाने के लिए कहा था. इतना ही नहीं भगवान राम लंका विजय के बाद भारद्वाज आश्रम ही आकर सत्यनारायण की कथा सुनी थी.
उसका चित्र भी भारद्वाज आश्रम में दर्शाया गया था. भारद्वाज ने ही इस आश्रम की स्थापना की थी. प्रचीन काल में यह प्रसिद्ध शैक्षणिक केंद्र था. वनगमन के समय श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण के साथ यहां आकर भारद्वाज जी से मिले थे. योगी सरकार महाकुंभ से पहले भारद्वाज आश्रम को कॉरिडोर बनाने का काम किया. प्रयागराज में ही नागवासुकि मंदिर, अलोप शंकरी मंदिर, मनकामेश्वर, द्वादश माधव, पड़िला महादेव जैसे प्रमुख मंदिर भी हैं. नागवासुकि मंदिर परिसर में स्थित भीष्म पितामह का मंदिर है. नागवासुकी को सर्पराज माना जाता है. नागवासुकी भगवान शिव के कण्ठहार हैं. नागवासुकि जी कथा का वर्णन स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में भी मिलता है. पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब देव और असुर, भगवान विष्णु के कहने पर सागर को मथने के लिए तैयार हुए तो मंदराचल पर्वत मथानी और नागवासुकि को रस्सी बनाया गया, लेकिन मंदराचल पर्वत की रगड़ से नागवासुकि जी का शरीर छिल गया. तब भगवान विष्णु के ही कहने पर उन्होंने प्रयाग में विश्राम किया और त्रिवेणी संगम में स्नान कर घावों से मुक्ति प्राप्त की. नागवासुकि प्रयाग से जाने लगे तो देवताओं ने उनसे प्रयाग में ही रहने का आग्रह किया. कहा जाता है कि पृथ्वी पर सबसे पहला यज्ञ खुद भगवान ब्रह्मा ने गंगा, यमुना और सरस्वती की पवित्र संगम पर किया था. इसी प्रथम यज्ञ से प्रथम के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना
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