यह लेख बलराज साहनी के जीवन और उनके आलीशान बंगले 'इकराम' के बारे में बताता है।
बलराज साहनी उन कलाकारों में थे, जो सामाजिक सरोकार से जुड़ी फ़िल्मों के साथ ही कमर्शियल फ़िल्मों में भी सक्रिय थे.यहां आलीशान बंगला खुद किरदार है, जिसके बनने के बाद उस अभिनेता की ज़िंदगी में बहुत कुछ बदल गया था. ये बंगला था बेमिसाल एक्टर बलराज साहनी का.
वो एक तरफ तो 'धरती के लाल', 'दो बीघा ज़मीन', 'काबुलीवाला' और 'गर्म हवा' जैसी यादगार सामाजिक सरोकार वाली फिल्मों का हिस्सा थे. भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे यादगार फिल्मों में से एक 'दो बीघा ज़मीन' के रोल के लिए उन्होंने अपना आधा से अधिक वज़न कम किया और हाथरिक्शा चलाना सीखा. यहीं से उनके करीबी लोग, उनके दोस्त, यहां तक कि उनके सेक्रेटरी उन पर ज़ोर डालने लगे कि अब उन्हें अपना एक बड़ा बंगला बनवाना चाहिए, जो एक फिल्म स्टार और उसकी शख़्सियत और रुतबे के साथ इंसाफ़ कर सके.मगर बार-बार दोस्तों के कहने पर या दिल में दबी एक आलीशान घर की हसरत की वजह से बलराज मान गए.
तब तक घर का स्ट्रक्चर पूरा हो चुका था. बेहद खूबसूरत और बहुत बड़े उस घर को देखकर परीक्षित सोच में पड़ गए. उन्हें लगा कि ये महलनुमा घर उनके पिता की शख़्सियत से मेल नहीं खाता था.वो पिता से बोले, "सामने स्लम्स है डैड, गरीब लोगों की झुग्गियां. हमारे जीवन के फ़लसफ़े के साथ ये महलनुमा घर मैच नहीं करता." पहली पत्नी के गुज़रने के बाद घर के एक युवा नौकर की भी यहां अचानक मृत्यु हो गई. जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्होंने बलराज को तोड़ कर रख दिया.उन्होंने कहा, "आखिर में उनके पिता ने माना कि उनका बेटा सही था. वो बोले कि बेटा तूने सही कहा था इससे अच्छे तो हम अपने पहले छोटे घर में थे. एक दूसरे के करीब. आते-जाते एक दूसरे से बात करते थे. इस बड़े घर में सब अपने अपने कमरों में रहते हैं. एक दूसरे से दूर, कटे हुए.
अपनी आख़िरी फिल्म 'गर्म हवा' के लिए बलराज को एक ऐस दृश्य के लिए शूट करना पड़ा, जिसमें फिल्म में भी निभाए गए उनके किरदार की बेटी भी आत्महत्या कर लेती है.
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