बांग्लादेश में हालात खराब होते चले जा रहे हैं और अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं पर हिंसा बढ़ रही है। भारत के लिए यह चिंता का विषय है।
प्रकाश सिंह। बांग्लादेश में हालात खराब होते चले जा रहे हैं। इसके चलते दक्षिण एशिया में जो परिदृश्य बन रहा है, वह भारत के लिए चिंता का विषय है। पाकिस्तान तो 1947 से ही भारत विरोधी हिंसा त्मक कार्रवाई कर रहा है। अफगानिस्तान को भारत ने बहुत आर्थिक मदद दी, परंतु उसका कोई विशेष सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। बांग्लादेश को हमने 1971 में स्वतंत्र कराया। शेख हसीना के कार्यकाल में ऐसा लगा कि हमारी पूर्वोत्तर की सीमाएं अब सुरक्षित रहेंगी और इस पड़ोसी देश से अच्छे संबंध बने रहेंगे, परंतु यह अध्याय भी 5
अगस्त 2024 को समाप्त हो गया, जब बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया और शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी। बांग्लादेश में सरकार विरोधी आंदोलन की अगुवाई जमाते इस्लामी, हिजबुत तहरीर और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के अलावा कई इस्लामी संगठन कर रहे थे। अमेरिका का एक प्रभावी वर्ग भी आंदोलनकारियों का समर्थन कर रहा था। लगता है हमारी खुफिया एजेंसी को इस षडयंत्र की भनक नहीं लगी। बांग्लादेश में इस समय एक अंतरिम सरकार चल रही है, जिसके मुख्य सलाहकार नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस हैं। तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और विशेष तौर पर हिंदुओं पर बराबर आक्रमण हो रहे हैं। मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, संतों को प्रताड़ित किया जा रहा है, हिंदू अधिकारियों को इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया जा रहा है, महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है, उनके घरों में लूटपाट हो रही है। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार 8 दिसंबर तक हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध 2,200 हिंसात्मक घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें हिंदुओं की हत्याएं भी शामिल हैं। बांग्लादेश सरकार का ध्यान जब इन घटनाओं की ओर आकर्षित किया जाता है तो वह दलील देती है कि यह हमारा आंतरिक मामला है और घटनाएं सांप्रदायिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है। क्या यह अजीब नहीं कि जब किसी देश में मोहम्मद साहब का कार्टून बनता है या कहीं कोई मस्जिद गिर जाती है, तब तो वह मामला वैश्विक हो जाता है और दुनिया भर के मुसलमान उस पर अपना विरोध प्रकट करते हैं, परंतु जब हिंदुओं के मंदिर तोड़े जाते हैं और उनका उत्पीड़न होता है तो यह संबंधित देश का आंतरिक मामला हो जाता है? बांग्लादेश में कुछ घटनाओं के पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं, क्योंकि वहां का अल्पसंख्यक वर्ग ज्यादातर अवामी लीग का समर्थन करता है
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