बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ संघर्ष की शुरुआत चाईबासा से की थी. जानिए किस तरह उन्होंने शुरू किया था आंदोलन .
बात नवंबर, 1897 की है. बिरसा मुंडा को पूरे 2 साल 12 दिन जेल में बिताने के बाद रिहा किया जा रहा था. उनके दो और साथियों--डोंका मुंडा और मझिया मुंडा-को भी छोड़ा जा रहा था.
तब बिरसा के साथी भरमी ने कहा हमने आपको एक दूसरा नाम भी दिया था 'धरती आबा.' अब हम आपको इसी नाम से पुकारेंगे.मुग़ल बादशाह अकबर के अंतिम दिन अपने बेटे सलीम की बग़ावत से जूझते बीते -विवेचनाबिरसा मुंडा ने बहुत कम उम्र में अंग्रेज़ों के खिलाफ़ विद्रोह का बिगुल बजा दिया था. उन्होंने ये लड़ाई तब शुरू की थी जब वो 25 साल के भी नहीं हुए थे. उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को मुंडा जनजाति में हुआ था.
कहानी मशहूर है कि उनके एक ईसाई अध्यापक ने एक बार कक्षा में मुंडा लोगों के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया. बिरसा ने विरोध में अपनी कक्षा का बहिष्कार कर दिया. उसके बाद उन्हें कक्षा में वापस नहीं लिया गया और स्कूल से भी निकाल दिया गया. उन्होंने पुलिस स्टेशनों और ज़मींदारों की संपत्ति पर हमला करना शुरू कर दिया था. कई जगहों पर ब्रिटिश झंडे यूनियन जैक को उतारकर उसकी जगह सफ़ेद झंडा लगाया जाने लगा जो मुंडा राज का प्रतीक था. अंग्रेज़ सरकार ने उस समय बिरसा पर 500 रुपए का इनाम रखा था जो उस ज़माने में बड़ी रक़म हुआ करती थी.
बताया जाता है कि दस गोलियाँ लगने के बावजूद बुद्धू ने मरते-मरते कहा, "आज तुम्हारी जीत हुई है, लेकिन ये तो अभी शुरुआत है. एक दिन हमारा 'उलगुलान' तुम्हें हमारी ज़मीन से बाहर फेंक देगा."सन् 1900 आते-आते बिरसा का संघर्ष छोटानागपुर के 550 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैल चुका था. सन 1899 में उन्हें अपने संघर्ष को और विस्तार दे दिया था. उसी साल 89 ज़मीदारों के घरों में आग लगाई गई थी. आदिवासी विद्रोह इतना बढ़ गया था कि राँची के ज़िला कलेक्टर को सेना की मदद माँगने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
इस गोलीबारी के दौरान बिरसा भी वहां मौजूद थे, लेकिन वो किसी तरह वहाँ से बच निकलने में कामयाब हो गए. कहा जाता है कि इस गोलीबारी में क़रीब 400 आदिवासी मारे गए थे, लेकिन अंग्रेज़ पुलिस ने सिर्फ़ 11 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की थी.श्रीनगर पर क़ब्ज़े के लिए भेजे गए पाकिस्तान के क़बायली लड़ाकों को खाली हाथ क्यों लौटना पड़ा?चक्रधरपुर के पास बिरसा को पकड़ा गया
बिरसा को दूसरे रास्ते से राँची ले जाया गया ताकि लोगों को पता न चल सके कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है. लेकिन जब बिरसा राँची जेल पहुंचे तो हज़ारों लोग उनकी एक झलक पाने के लिए वहाँ पहले से ही मौजूद थे.बिरसा के पकड़े जाने का विवरण सिंहभूम के कमिश्नर ने बंगाल के मुख्य सचिव को भेजा था. अदालत के कमरे में कमिश्नर फ़ोर्ब्स डीसीपी ब्राउन के साथ आगे की बेंच पर बैठे हुए थे. उनके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान थी. वहां फ़ादर हॉफ़मैन भी अपने एक दर्जन साथियों के साथ मौजूद थे.
एक दिन बिरसा जब सोकर उठे तो उन्हें तेज़ बुख़ार और पूरे शरीर में भयानक दर्द था. उनका गला भी इतना ख़राब हो चुका था कि उनके लिए एक घूंट पानी पीना भी असंभव हो गया था. कुछ दिनों में उन्हें ख़ून की उल्टियां शुरू हो गई थीं. 9 जून, 1900 को बिरसा ने सुबह 9 बजे दम तोड़ दिया.
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