यह लेख भारत में उदारीकरण के प्रवर्तक और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के पैरोकार माने जानेवाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के अवसर पर डॉ. आर.सी. कूपर के जीवन और विचारों पर प्रकाश डालता है.
भारत में उदारीकरण के प्रवर्तक और मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के पैरोकार माने जानेवाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का हाल ही में निधन हुआ. इस मौके पर डॉ. मनमोहन सिंह की तरह ही मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के एक और प्रखर समर्थक डॉ. आर.सी. कूपर याद आते हैं. 14 जुलाई 1969 को संसद या संघीय योजना आयोग को सूचित किए बिना इंदिरा गांधी ने स्पेशल प्रेसिडेंशियल डिक्री के जरिए 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था.
इसके पीछे इंदिरा का तर्क यह था कि इससे आम लोगों, खासकर संकटग्रस्त कृषि क्षेत्र की बैंकिंग वित्त सेवाओं तक पहुंच बढ़ेगी. इस समय डॉ. कूपर स्वतंत्र पार्टी के महासचिव थे. जो 1967 के आम चुनावों में लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में उभरी थी. इस पार्टी की स्थापना ‘राजाजी’ के नाम से विख्यात चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने की थी. वे स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल थे और महात्मा गांधी ने उन्हें ‘मेरी अंतरात्मा का संरक्षक’ की संज्ञा से नवाजा था. राजाजी ने नेहरूवादी समाजवाद के विरोध स्वरूप इस पार्टी का गठन किया था. 15 अगस्त 1959 को मुंबई में इसकी स्थापना के दौरान मंच पर जहां राजाजी विराजमान थे, वहीं उनके ठीक पीछे कूपर को भी बैठे देखा जा सकता था, जो उस वक्त अपेक्षाकृत काफी युवा थे. आरसी कूपर मुक्त बाजार अर्थव्यवस्थाओं के शुरुआती समर्थकों में से एक थे. इंग्लैंड से चार्टर्ड अकाउंटेंट कूपर इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स के अध्यक्ष थे. अर्थशास्त्र में पीएच-डी धारक कूपर प्रभावशाली ‘फ्री एंटप्राइज फोरम’ के उपाध्यक्ष भी रहे. वे उस सोवियत शैली के मार्क्सवादी समाजवाद के पुराने मॉडल को अपनाने के भी कटु आलोचक थे. इसे इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पसंद करती थी. कूपर दक्षिण पूर्व एशिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बड़े प्रशंसक थे. फ्री एंटप्राइज फोरम जर्नल में उन्होंने सिंगापुर का उदाहरण देते हुए ‘बीसवीं सदी का समाजवाद’ शीर्षक से एक लेख लिखा था. इसमें उन्होंने लिखा था: ‘प्रतिकूल पड़ोसियों से घिरे सिंगापुर ने समाजवादियों और पूंजीपतियों एवं पश्चिम जगत के घोर आलोचक कम्युनिस्टों की गठबंधन सरकार के साथ अपनी स्वतंत्र राह पर आगे बढ़ने की शुरुआत की. लेकिन आर्थिक संकेत कोई बहुत सुखद नहीं थे. छह साल बाद ही आर्थिक विकास एवं स्थिरता की जो तस्वीर पेश की गई'
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