भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी की मुलाक़ात ने भारत और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच संबंधों में बदलाव का संकेत दिया है. यह मुलाक़ात तालिबान के नेतृत्व को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मांग की जा रही स्वाभाविक मान्यता देने के रूप में देखी जा सकती है. पाकिस्तान और चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में अपनी रणनीतिक पकड़ को मजबूत करने और अपने हितों की रक्षा करने के लिए तालिबान के साथ बातचीत की है.
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आठ जनवरी को दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाक़ात की थी. यह मुलाक़ात भारत और अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार के बीच हाल की बातचीत यह दिखाती है कि भारत अब इस क्षेत्र के बदलते राजनीतिक हालात को नए नज़रिये से देख रहा है. ऐसा अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के तीन साल बाद हो रहा है. भारत के लिहाज से इस घटना को रणनीतिक और कूटनीति क झटका माना गया था.
अफ़ग़ानिस्तान में लोकतांत्रिक शासन के दो दशक के दौरान भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के सैन्य प्रशिक्षण, स्कॉलरशिप्स और नए संसद भवन के निर्माण जैसी मुख्य परियोजनाओं पर निवेश किया था, लेकिन तालिबान की सरकार के आने के बाद से ये चीजें तेजी से कहीं पीछे छूट गईं. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान और चीन जैसे भारत के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों को वहां अपना प्रभाव बढ़ाने का रास्ता मिल गया था. भारत के शेयर बाज़ार क्यों नहीं खड़े हो पा रहे, ये रहीं अहम वजहेंरुपये की गिरती कीमत के बीच कांग्रेस ने क्यों याद दिलाई पीएम मोदी की उम्र इसके बाद अफ़ग़ानिस्तान में भारत की रणनीतिक पकड़ कमजोर हुई और सुरक्षा को लेकर नई चिंताएं पैदा हो गई थीं. फिर, पिछले हफ्ते भारत और अफ़ग़ानिस्तान के रिश्तों में बदलाव का संकेत मिला. जब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी से मुलाक़ात की. यह मुलाक़ात अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार आने के बाद हुई दोनों देशों के बीच की सबसे उच्चस्तरीय वार्ता थी. ऐसी ख़बरें आईं कि तालिबान ने भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में अपनी दिलचस्पी दिखाई है और इसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक ताक़त करार दिया. ख़बरों के मुताबिक, इस वार्ता का मुख्य मुद्दा व्यापार बढ़ाना और ईरान के चाबहार बंदरगाह का इस्तेमाल करना था. भारत और तालिबान के बढ़ते संपर्क पर पाकिस्तानी एक्सपर्ट क्या कह रहे हैं?तालिबान और भारत में ऐसी क्या बात हुई कि पाकिस्तान में हलचल, अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व डिप्लोमैट ने बताया धोखाभारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री और अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकीअमेरिका के थिंक-टैंक विल्सन सेंटर के माइकल कुगलमैन ने बताया कि भारत ने अब तालिबान के नेतृत्व को स्वाभाविक मान्यता दे दी है, जिसकी तालिबान सत्ता में वापस आने के बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मांग कर रहा था. वह कहते हैं, 'अगर भारत जैसा राष्ट्र जिसने तालिबान के साथ कभी मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं रखे थे, वह अगर तालिबान के साथ सामान्य रिश्ते बना रहा है, तो यह इसे और ज्यादा महत्वपूर्ण बनाता है और साथ ही यह तालिबान के लिए एक राजनयिक जीत भी है.' अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से कई देशों ने इस शासन को लेकर अपने अलग-अलग नज़रिए अपनाए हैं, जिसमें मानवाधिकार और सुरक्षा की चिंताओं के बावजूद कूटनीतिक संबंधों को बनाए रखने की कोशिश की गई है. जैसे चीन अपने सुरक्षा और आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर तालिबान के साथ सक्रिय तौर पर जुड़ा है और चीन ने अफ़ग़ानिस्तान में अपना एक राजदूत भी नियुक्त किया है. किसी भी देश ने अभी तक औपचारिक तौर पर तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन क़रीब 40 देशों ने किसी न किसी रूप में अफ़ग़ानिस्तान से कूटनीतिक या अनौपचारिक संबंध बनाए हुए हैं. इसलिए अफ़ग़ानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत रहे जयंत प्रसाद जैसे विशेषज्ञ भारत की इस पहल के प्रति ज्यादा सतर्क हैं. उन्होंने बताया कि पिछले तीन सालों से भारत ने विदेश सेवा के एक राजनियक के ज़रिए तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखा है. भारत ने साल 1990 के दशक में गृहयुद्ध के दौरान अफ़ग़ानिस्तान में अपने वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए थे और साल 2002 में युद्ध समाप्त होने के बाद उसे फिर से खोल दिया था. जयंत ने कहा, 'हम नहीं चाहते थे कि यह अंतराल फिर से पैदा हो, इसलिए हम बातचीत करना चाहते थे. यह बस रिश्तों को एक कदम आगे बढ़ाने की कोशिश है.'साल 2023 में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारतीय संसद में कहा था कि भारत के अफ़ग़ानिस्तान के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध हैं. भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 500 से अधिक परियोजनाओं पर 3 अलब डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसमें सड़कें, बिजली, बांध, अस्पताल और क्लीनिक शामिल हैं. भारत ने अफ़ग़ान अधिकारियों को प्रशिक्षित किया है, हजारों छात्रों को छात्रवृत्ति दी हैं और एक नया संसद भवन बनाया है.इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के मुताबिक, 'काबुल में शासन चाहे राजतांत्रिक हो, साम्यवादी हो या इस्लामिक, दिल्ली और काबुल के बीच एक स्वाभाविक गर्मजोशी हमेशा रही है.'वो कहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में विकास और मानवीय सहायता पहुंचाने वाले के रूप में भारत की एक महत्वपूर्ण विरासत रही है, जिसकी वजह से अफ़ग़ानिस्तान की जनता भारत के प्रति अच्छी भावनाएं रखती है, जिसे भारत खोना नहीं चाहता है.जुलाई 2024 में, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ़ ने बीबीसी को बताया था कि पाकिस्तान आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक अभियान के हिस्से के तौर पर अफ़ग़ानिस्तान पर हमले जारी रखेगा. भारत और तालिबान के बीच बातचीत से कुछ दिन पहले, पाकिस्तान ने पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में हवाई हमले किए थे. अफ़ग़ानिस्तान सरकार के मुताबिक इन हमलों में दर्जनों लोग मारे गए थे.साल 2021 में एक शीर्ष पाकिस्तानी खुफिया अधिकारी तालिबान शासन से मिलने वाले पहले विदेशी मेहमानों में से एक थे, उस समय कई लोगों ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार के आने को भारत के लिए एक रणनीतिक झटका माना था. कुगलमैन कहते हैं, 'भारत के तालिबान से बातचीत करने के पीछे सिर्फ पाकिस्तान ही कारण नहीं ह
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