वीपी मेनन सरदार पटेल के भरोसेमंद आईसीएस अफ़सर थे. कश्मीर पर जब कबायली हमला हुआ तो वीपी मेनन को ही कश्मीर के हालात संभालने का जिम्मा दिया गया था.
पाकिस्तान की तरफ़ से आए कबायली हमलावरों के श्रीनगर के नज़दीक पहुँच जाने के बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे.1947 में आज़ादी के बाद भारतीय संघ में शामिल होने वाले रजवाड़ों की संख्या पाँच सौ से ज़्यादा थी. सिर्फ़ तीन रजवाड़ों ने आख़िरी वक़्त तक कोई फ़ैसला नहीं लिया था. हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर.
उधर कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनसंख्या के कारण मोहम्मद अली जिन्ना ये उम्मीद लगाए बैठे थे कि कश्मीर उनकी झोली में 'पके हुए फल की तरह गिरेगा.'ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अध्यक्ष एम.ए. जिन्ना बीमारी के चलते कश्मीर में कुछ दिन बिताना चाहते थे. उन्होंने लिखा, ''महाराजा हरि सिंह नहीं चाहते थे कि जिन्ना छुट्टी मनाने के लिए भी उनके क्षेत्र में कदम रखें.''
उन्होंने लिखा,''नेतृत्व में भले ही पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी थे लेकिन क़बायली न तो आधुनिक युद्ध प्रणाली से परिचित थे और न ही किसी अनुशासन से.'' श्रीनगर का रास्ता पठानों के सामने खुला हुआ था. 135 मील लंबी सड़क पर पहरे और निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं थी. कबायलियों की योजना स्पष्ट थी. सुबह की पहली किरण फूटते ही असंख्य कबायली महाराजा हरि सिंह की सोती हुई राजधानी पर टूट पड़ेंगे.
माउंटबेटन को ये ख़बर उस समय मिली जब वो थाइलैंड के विदेश मंत्री के सम्मान में दिए गए भोज के लिए कपड़े बदल रहे थे. उन्होंने लिखा,''मैं हवाई-अड्डे से सीधे सरकारी गेस्ट हाउस गया. वहाँ भी इक्का-दुक्का चपरासियों के अलावा कोई नहीं था. मेरे पास कोई भी सशस्त्र गार्ड नहीं था. फिर मैं वहाँ से सीधे कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन के घर गया.''
उन्होंने लिखा,''वो इतने थके हुए थे कि उन्हें जो पलंग सामने दिखाई दी उसी पर लेट गए. वहाँ कोई रज़ाई नहीं थी. ओढ़ने के लिए उन्हें एक और बेडकवर का सहारा लेना पड़ा क्योंकि उनसे श्रीनगर की ठंड बर्दाश्त नहीं हो रही थी.'' बहरहाल किसी तरह विमान दिल्ली पहुंचा और वीपी मेनन हवाई-अड्डे से सीधे डिफ़ेंस कमेटी की मीटिंग में पहुंचे जहाँ उन्होंने बताया कि वो श्रीनगर में क्या देख कर आ रहे हैं.इस बीच क़बायली उड़ी और मुज़फ़्फ़राबाद पर कब्ज़ा करते हुए 25 अक्तूबर को बारामूला तक आ पहुंचे थे. यहाँ पर उन्होंने बहुत बड़ा जनसंहार किया.
बैठक में तय हुआ कि मेनन एक बार फिर विलय पत्र लेकर कश्मीर जाएंगे. जैसे ही महाराजा उस पर दस्तख़त करेंगे, भारत अपने सैनिक कश्मीर में भेजना शुरू कर देगा. ये सब सामान 48 ट्रकों के काफ़िले में लाया गया था और इसमें हीरे जवाहरात से लेकर पेंटिंग्स और कालीन-गलीचे सब शामिल थे.लंबा पहाड़ी सफ़र तय करके थके हुए महाराजा सोने चले गए. सोने से पहले महाराजा ने अपने एडीसी को महाराजा की हैसियत से अपना अंतिम आदेश दिया.
लापिएर और कोलिंस लिखते हैं, ''मेनन बहुत ख़ुश थे. उन्होंने उन दोनों के लिए एक एक बड़ा पैग बनाया. कुछ देर बाद उन्होंने अपनी जेब से एक कागज़ निकालकर अंग्रेज़ राजनयिक को दिखाया और बोले, ''ये रहा कश्मीर का विलय पत्र. अब कश्मीर हमारा है. अब हम उसे कभी अपने हाथ से जाने नहीं देंगे.''
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