हिंदी हैं हम शब्द शृंखला में आज का शब्द है 'भावक' जिसका अर्थ है भाव, सत्ता, अस्तित्व आदि से युक्त, भावुक, थोड़ा, जरा। इस कविता में गिरिजाकुमार माथुर समाज के अंधेरे, भ्रमपूर्ण और अकेलेपन भरे परिदृश्य को चित्रित करते हैं। वे भीड़, अविश्वास, तर्क और कामुकता जैसे विषयों पर प्रकाश डालते हैं और मानव के भीतर देवता और राक्षस के द्वंद्व को उजागर करते हैं।
' हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- भावक , जिसका अर्थ है- भाव, सत्ता, अस्तित्व आदि से युक्त, भावुक, थोड़ा, जरा। प्रस्तुत है गिरिजाकुमार माथुर की कविता - राहें सभी अंधी हैं, ज़्यादातर लोग पागल हैं चारों तरफ़ शोर है, चारों तरफ़ भरा-पूरा है चारों तरफ़ मुर्दनी है भीड़ और कूड़ा है हर सुविधा एक ठप्पेदार अजनबी उगाती है हर व्यस्तता और अधिक अकेला कर जाती है हम क्या करें : भीड़ और अकेलेपन के क्रम से कैसे छुटें? राहें सभी अंधी हैं ज़्यादातर लोग पागल हैं अपने ही नशे में चूर वहशी हैं या...
कायर हैं थोड़े-से ईमानदार लगते सिर्फ़ मुजरिम हैं हम क्या करें : अविश्वास और आश्वासन के क्रम से कैसे-कैसे छुटें? तर्क सभी अच्छे हैं अंत सभी निर्मम हैं आस्था के वसनों में कंकालों के अनुक्रम हैं प्रौढ़ सभी कामुक हैं जवान सब अराजक हैं वृद्धजन अपाहिज हैं मुँह बाए हुए भावक हैं। हम क्या करें : तर्क और मूढ़ता के क्रम से कैसे छुटें! हर आदमी में देवता है और देवता बड़ा बोदा है हर आदमी में जंतु है जो पिशाच से न थोड़ा है हर देवतापन हमको नपुंसक बनाता है हर पैशाचिक पशुत्व नए जानवर बढ़ाता है हम क्या करें : देवता और...
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