Uttar Pradesh Lok Sabha Election 2024.
भास्कर एक्सप्लेनर- क्या बीजेपी के जाल में फंसी कांग्रेस:लेखक: शिवेंद्र गौरव19 फरवरी 2024। राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का 37वां दिन था। 2019 में अमेठी से चुनाव हारने के लंबे अरसे बाद राहुल यहां पहुंचे थे। इसी बीच स्मृति ईरानी ने राहुल को चुनौती देते हुए कहा,इससे पहले और बाद स्मृति ईरानी लगातार राहुल को अमेठी से चुनाव लड़ने की चुनौती देती रहीं। सोनिया गांधी के राज्यसभा जाने के बाद रायबरेली सीट भी खाली हो गई। अमेठी और रायबरेली दोनों सीट पर कांग्रेस ने ‘राजनीतिक चुप्पी’ साधे...
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, असल में राहुल और प्रियंका दोनों शुरूआत से ही चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। कांग्रेस के बड़े नेता नहीं चाहते थे कि प्रियंका और राहुल दोनों एक साथ चुनाव लड़ें, क्योंकि सोनिया पहले से ही राज्यसभा सांसद हैं, और अगर राहुल और प्रियंका दोनों जीत जाते हैं तो संसद में परिवार के तीन सदस्य होने से भाजपा को कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने का नया मौका मिल जाएगा।
सोनिया गांधी ने अब तक सिर्फ रायबरेली में एक रैली की है। यहां उन्होंने मंच से कहा कि वह राहुल को रायबरेली की जनता को सौंप रही हैं। गहलोत को कांग्रेस के प्रमुख रणनीतिकारों में से एक माना जाता है। गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने उन्हें गुजरात का प्रभारी बनाया था। उनकी अगुवाई में पार्टी ने गुजरात में बीजेपी को कड़ी टक्कर दी थी।
भूपेश बघेल खुद छत्तीसगढ़ की राजनंदगांव सीट से प्रत्याशी हैं। छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों पर 7 मई तक तीन चरणों में वोटिंग पूरी हो गई थी। बघेल की अपनी सीट पर 26 अप्रैल को वोटिंग थी। 9 मई को उन्हें आब्जर्वर बनाकर रायबरेली भेज दिया गया। इससे पहले तक भूपेश बघेल ने अपनी सीट राजनंदगांव में कई कार्यक्रम किए थे, साथ ही अलग-अलग राज्यों में कई जनसभाएं कीं थी।
गांधी परिवार और दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा कांग्रेस ने कई और दिग्गज नेताओं को भी रायबरेली और अमेठी में चुनाव प्रचार के लिए बुलाया। हमें रायबरेली में कांग्रेस के नेताओं के कार्यक्रम की एक लिस्ट मिली। इसके अनुसार, 15 मई को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और हिमाचल प्रदेश के सीएम सुक्खू के कई कार्यक्रम हुए। इसके अलावा 14 मई को हिमाचल प्रदेश के डिप्टी सीएम मुकेश अग्निहोत्री और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट ने भी कई जगहों पर रैलियां की। वहीं 16 मई को इमरान प्रतापगढ़ी की भी...
विजय उदाहरण देते हुए कहते हैं कि 1984 में इंदिरा के देहांत के बाद का दौर था। अटल को ग्वालियर सीट से चुनाव लड़ना था। उन्हें माधवराव सिंधिया ने आश्वासन दिया था कि वह उनके खिलाफ चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन ऐन मौके पर माधव राव सिंधिया ने नामांकन कर दिया और अटल चुनाव हार गए।
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