करोड़ों साल पहले मंगल की सतह पानी से आबाद थी. यह पानी आगे चलकर गायब हो गया. अब जमीन की गहराई में इसका एक सबूत मिला है.
मंगल ग्रह का वातावरण करीब 95.32 प्रतिशत कार्बन डाई ऑक्साइड का बना है. इंसान मंगल की हवा में सांस नहीं ले सकते हैं.वैज्ञानिक यह मानते आ रहे थे कि करीब 430 करोड़ साल पहले मंगल ग्रह पर पानी से लबालब एक प्राचीन समुद्र हुआ करता था. इतना पानी, जो समूचे मंगल ग्रह की सतह को करीब 450 फीट की तरल परत से ढकने के लिए पर्याप्त था. सिर्फ समुद्र नहीं, यहां नदियां और झीलें भी थीं.
इनसाइट मिशन से पहले मंगल की चट्टानों, ज्वालामुखियों और मिट्टी का अध्ययन कर इस ग्रह की सतह का विस्तृत अध्ययन किया गया था. ग्रह की संरचना और इसका निर्माण कैसे हुआ, इसके लिए सतह के नीचे के हिस्से को जानना बेहद जरूरी था.अब वैज्ञानिकों को मंगल ग्रह की सतह के नीचे इस पहेली का जवाब मिला है. यहां जमीन के नीचे तरल पानी का बड़ा भंडार मौजूद होने के मजबूत संकेत मिले हैं.
इनसाइट मिशन का मुख्य मकसद मंगल ग्रह की संरचना से जुड़े बारीक ब्योरे जानना था. मसलन, मंगल ग्रह का कोर कैसा है. यह तरल है कि ठोस. जमीन के नीचे का हिस्सा कितना गर्म है. यहां भूकंपीय गतिविधियां कितनी नियमित हैं. यह मंगल ग्रह की पहलीमंगल के भूमिगत जलाशय की यह खोज एक अलग दिशा में उम्मीद जगा सकती है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये जगह मंगल पर जीवन की खोज में अहम ठिकाना साबित हो सकती है. इसके लिए जरूरी होगा कि इस जलाशय तक पहुंचा जा सके.
इस खोज की अहमियत रेखांकित करते हुए वह कहते हैं,"मंगल ग्रह पर पानी के चक्र को समझना, वहां जलवायु, सतह और भीतरी ढांचे के विकास को जानने की दिशा में काफी अहम है." जीवन की संभावनाओं पर राइट ने कहा,"पृथ्वी पर हम जानते हैं कि जहां पर्याप्त नमी होती है और ऊर्जा के समुचित स्रोत होते हैं, वहां पृथ्वी के नीचे बहुत गहराई में सूक्ष्मजीवों के रूप में जीवन है."वाशन राइट आगे कहते हैं,"पानी कहां हैं और कितना है, यह जानना एक शुरुआती फायदेमंद मौका होगा." मंगल का वातावरण कम घना है.
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