कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हुई हिंसा के बाद अब तक मणिपुर में हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं, दोनों समुदाय मुसीबतों से जूझ रहे हैं. सरकार मणिपुर को पटरी पर लाने में नाकाम क्यों हो रही है?
52 साल की नेंगनेई चोंग मणिपुर की रहने वाली हैं, अब मिज़ोरम के राहत शिविरों में रह रही हैंमणिपुर में पिछले साल मई महीने में शुरू हुई जातीय हिंसा में 200 से ज़्यादा लोग मारे जा जुके हैं और एक साल बाद भी हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं.था, "एक साल से मणिपुर शांति की राह देख रहा है. उसके पहले 10 साल शांत रहा. अचानक जो कलह वहाँ पैदा हुई है या पैदा की गई है, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है.
राजधानी आइज़ोल से क़रीब 15 किलोमीटर दूर शहरी ग़रीबों के लिए बनी एक हाउसिंग सोसायटी में रहने वाली नेंगनेई को घर वापसी की कोई उम्मीद नहीं है. न उनके पास कोई काम है, न पूंजी.हिंसा का एक साल: पीएम मोदी ने किए देश के भीतर 162 दौरे पर मणिपुर से रहे दूर लेंबी चिंगथाम कहती हैं, "मैं डिप्रेशन में हूँ. मगर डिप्रेशन में मैं सोचती रहती हूँ कि मेरा परिवार यहां कैसे रहेगा?"मणिपुर में अत्याचार, बलात्कार और हत्याओं का ख़ौफ़नाक मंज़र -ग्राउंड रिपोर्टनेंगनेई चोंग मिज़ोरम में हैं तो उनकी रिश्तेदार और उन्हीं के गांव की रहने वाली बॉईनू हाओकीप मणिपुर के कुकी-बहुल चुराचांदपुर में रह गईं. हिंसा भड़कने के कुछ दिनों बाद ही हज़ारों विस्थापित कुकी यहीं आ गए थे.
एक वक़्त था, जब वो मणिपुर में करोड़ों के मकान में रहते थे. आज उनके दोनों बेटे, रॉबर्ट और हैलरी मिज़ोरम में दिहाड़ी मज़दूरी करने पर मजबूर हैं. पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 1971 की जंग लड़ चुके रामथांग को दुख है कि हिंसा के दौरान उनके सारे मेडल खो गए. बदले हालात में वो भी मज़दूरी करने को मजबूर हैं.राज्य और केंद्र की सरकारें दावे करती रहीं कि वो हालात को सामान्य करने की सभी कोशिशें कर रही हैं लेकिन आज भी मणिपुर पटरी पर नहीं है. कई बिखरे परिवार पड़ोसी मिज़ोरम के राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं.
मिज़ोरम प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष वनलाल हमुअका ने कहा, "राज्य में नई सरकार को बने छह महीने हो गए हैं लेकिन अब तक वो केंद्र सरकार को मणिपुर से आए पीड़ितों की सही जानकारी नहीं दे पाई है. भारत सरकार से मदद लेने के लिए हिंसा पीड़ितों की सही शिनाख्त कर उनके नाम और सूची भेजनी होगी."इस राजनीतिक बहस का 33 साल के जोसेफ लुलुन की ज़िंदगी पर शायद ही असर पड़े.
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