मदनपुरा में 300 साल पुराना मंदिर सुर्खियों में है। हिन्दू पक्ष का दावा है कि यहां स्थापित शिवलिंग उससे भी पुराना है। मुस्लिम समुदाय मंदिर खोलने के विरोध में है। प्रशासन इसको लेकर कितना संजीदा है, यह देखना होगा।
300 साल पुराना, हिन्दुओं का दावा-मिट्टी में दबा शिवलिंग ; मुस्लिम बोले- पूजा करें, शांतिभंग न होसिद्धिश्वर महादेव मंदिर करीब 300 साल पुराना है। हिंदू पक्ष का दावा है, यहां स्थापित शिवलिंग उससे भी पुराना। यह मंदिर काशी की प्राचीन नागर शैली में बना है। इसके अंदर-बाहर धार्मिक चिन्ह भी बने हैं। मंदिर के बाहर कमल पुष्प और शंख बनाए गए हैं। अंदर सनातनसंभल में मुस्लिम बहुल इलाके में मिले मंदिर को खुलवाने के बाद अब वाराणसी के मदनपुरा में 300 साल पुराना मंदिर सुर्खियों में है। मंदिर के दरवाजे पर सालों
से ताला बंद है। यह मंदिर एक कोठी के अंदर मौजूद है। अब इस मंदिर में पूजा-पाठ करने की मांग उठने लगी है। सनातन रक्षक दल मंदिर का ताला खोलने पर अड़ा है। वहीं मुस्लिम समुदाय मंदिर खोलने के विरोध में है। मकान में रहने वालों का कहना है कि मंदिर को 80-100 साल से बंद ही देख रहे हैं। इसमें किसी देवी-देवता की प्रतिमा या शिवलिंग नहीं है। मंदिर का इतिहास और वजूद क्या है? जिस कोठी के अंदर मंदिर मौजूद है, उसका इतिहास क्या है? इस मंदिर को लेकर हिन्दू-मुस्लिम पक्ष के दावे क्या-क्या हैं? प्रशासन इसको लेकर कितना संजीदा है, उसका रुख क्या है ? यह जानने के लिएकी टीम मदनपुरा पहुंची। दोनों पक्षों से बात भी की। मंदिर के बाहर और अंदर की स्थिति की पड़ताल करते हुए स्थानीय लोगों से इतिहास जाना।पहले जानिए काशी के मदनपुरा का इतिहास वाराणसी गलियों का शहर है। यहां हर गली में भगवान शंकर विराजमान हैं। काशी के प्राचीन मोहल्लों में शुमार मदनपुरा को सेठ मदनपाल सिंह के नाम पर बसाया गया था। बनारसी साड़ी कारोबारियों के इस मोहल्ले में मिश्रित आबादी रहती है। हिन्दू वर्ग में बंगाली समाज के कई घर हैं। वहीं 70 फीसदी मकान मुस्लिम समुदाय के हैं। इस मोहल्ले में केवल रिहायशी मकान ही नहीं व्यवसायिक दुकानें भी हैं। इतिहासकारों की माने तो इस क्षेत्र में गंगा स्नान से लौटेने वाले लोग गलियों में मंदिरों को जलाभिषेक करते थे और फिर अपने गंतव्य को जाते थे। बंगाली टोला की सराय या धर्मशालाओं में ठहरने वाले मदनपुरा के इसी मोहल्ले से दशाश्वमेध, केदार या अन्य घाटों तक जाते थे। पुरोहित इस क्षेत्र को सिद्धेश्वर और पुष्पदन्तेश्वर तीर्थ का नाम देते हैं
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