मध्य पूर्वः आमने-सामने रहे सऊदी अरब और ईरान के क़रीब आने के क्या हैं मायने

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मध्य पूर्वः आमने-सामने रहे सऊदी अरब और ईरान के क़रीब आने के क्या हैं मायने
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कभी एक दूसरे के कड़े प्रतिद्वंद्वी रहे ईरान और सऊदी अरब आपसी दूरियां मिटाने और एक साथ दिखने का प्रयास कर रहे हैं. इसकी वजह क्या है?

मध्य पूर्व के इन दो प्रभावशाली देशों- सुन्नी बहुल सऊदी अरब और शिया बहुल ईरान के रिश्ते जटिल और तनावपूर्ण रहे हैं.

वहीं, बीते सोमवार रियाद में इस्लामिक देशों के असाधारण और आपात सम्मेलन के बाद ईरान के उप-राष्ट्रपति मोहम्मद रेज़ा आरेफ़ ने सऊदी क्राउन प्रिंस से मुलाक़ात की. वहीं, ईरानी उपराष्ट्रपति के साथ मुलाक़ात के बाद सऊदी क्राउन प्रिंस ने भी कहा था कि ईरान के साथ रिश्ते बेहतर करना सऊदी के भी हित में है.बीते एक महीने के भीतर ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची और सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के बीच दो मुलाक़ातें हुई हैं

वहीं रविवार को ही सऊदी अरब के सेना प्रमुख जनरल फ़याज़ बिन हमीत अल राविली तेहरान पहुंचे थे और उन्होंने ईरानी सेना प्रमुख मेजर जनरल मोहम्मद बाघेरी से मुलाक़ात की थी. अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मुदस्सिर ख़ान कहते हैं, “एक सामान्य धारणा है कि सऊदी अरब के सुन्नी और ईरान के शिया होने की वजह से इन दोनों देशों के बीच तनाव है. सऊदी और ईरान प्रतिद्वंद्वी तो हैं और ये भी तथ्य है कि एक शिया देश है और दूसरा सुन्नी. लेकिन उनके बीच रहा तनाव और प्रतिद्वंद्विता वैश्विक राजनीति की वजह से है.

लेकिन हाल के सालों में सऊदी अरब ने सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भरता कम करने के प्रयास किए हैं. सऊदी अरब ने साल 2030 तक के लिए जो लक्ष्य रखे हैं उनमें क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा शीर्ष पर है. लेकिन पिछले पंद्रह-बीस सालों में गैर अरब देश भी मध्य पूर्व में प्रभावी हुए हैं, ख़ासकर ईरान और तुर्की. ईरान का मध्य पूर्व में ख़ासा रसूख़ बढ़ गया है.

आगे चलकर सूडान और मोरक्को भी इन समझौतों में शामिल हो गए और इसराइल के साथ संबंध बहाल कर लिए. इन समझौते के बाद अरब देशों में इसराइल के दूतावास खुले और सीधे उड़ाने शुरू हुईं. कई और क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाने के प्रयास हुए.इसराइली बंधकों की रिहाई के लिए इसराइल में प्रदर्शनकारी विश्लेषक मानते हैं कि सात अक्तूबर के घटनाक्रम ने इसराइल और सऊदी अरब के बीच सामान्य हो रहे संबंधों को पटरी से उतार दिया और सऊदी को ईरान के क़रीब आने पर सोचने के लिए विवश किया.

"लेकिन मध्य पूर्व के मौजूदा हालात में अभी ईरान और सऊदी अरब का रिश्ता यहां सबसे अहम है, यदि ईरान और सऊदी के संबंध ख़राब हो जाते हैं तो सऊदी अरब फ़लस्तीनियों के मुद्दे को छोड़ देगा और फिर आगे कभी ना कभी इसराइल के साथ समझौता कर लेगा." मुक़तदर ख़ान कहते हैं, “मोहम्मद बिन सलमान की भाषा में ये सख़्ती ईरान के साथ संबंध बेहतर होने की वजह से है. अगर ईरान के साथ सऊदी अरब के संबंध बेहतर हो जाते हैं तो इसका सीधा असर इसराइल के साथ होने वाले समझौते पर पडे़गा और इससे मध्य पूर्व भी प्रभावित होगा.”पाकिस्तानियों को यूएई का वीज़ा नहीं मिलने के कारण वहाँ के राजदूत ने बताए, भारतीयों पर भी बोलेबीती जुलाई में पेज़ेश्कियान ने तेहरान में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, तब सऊदी के अधिकारी इस समारोह में शामिल होने पहुंचे थे.

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