मनरेगा को कभी यूपीए सरकार की विफलता का प्रतीक बताया गया था, लेकिन कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान यह ग्रामीण मजदूरों के लिए जीवन रेखा साबित हुई।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ( मनरेगा ) को कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपीए सरकार की विफलता का प्रतीक बताया था। लेकिन यह कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के लिए जीवन रेखा साबित हुई। यह योजना को मनमोहन सिंह सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान ही साल 2005 में शुरू की गई थी। मनरेगा मनमोहन सिंह सरकार की प्रमुख योजना ओं में से एक थी। इस योजना का मकसद ग्रामीण परिवारों के लिए 100 दिनों की रोजगार की गारंटी सुनिश्चित करना था। यह योजना खासकर उन परिवारों के लिए रोजगार सुनिश्चित
करना था, जिनके सदस्य अप्रशिक्षित श्रमिक थे। इसका मुख्य लक्ष्य ग्रामीण इलाकों में रोजगार की स्थिति को मजबूत करना था और पलायन को रोकना था। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) ने इस योजना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एनएसी के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस योजना को 'काम करने का अधिकार'के रूप में परिभाषित किया, जिससे लाखों गरीबों को रोजगार मिला और उनके जीवन स्तर में सुधार करने में मदद मिली। पीएम मोदी ने लोकसभा में क्या कहा था 2014 में एनडीएस सरकार के सत्ता में आने के बाद मनरेगा की आलोचना भी हुई। खबरों में कहा गया था कि यह योजना केवल सबसे पिछड़े जिलों तक ही सीमित है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में लोकसभा में कहा था कि मनरेगा को बंद नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह कांग्रेस की 60 वर्षों की गरीबी को मिटाने में विफलता का जीता-जागता स्मारक है। लॉकडाउन में सहारा बनी योजना 2020 जब कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन लागू हुआ, तो लाखों लोग शहरों से अपने गांवों की ओर वापसी करने लगे। इस समय मनरेगा ने ग्रामीण क्षेत्र के लिए बड़ा सहारा दिया। एक अध्ययन के मुताबिक, इस योजना ने लॉकडाउन के दौरान जो परिवार आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे, उनके लिए मनरेगा योजना ने उनकी खोई हुई आय का 20 से 80 फीसदी तक की भरपाई की। जो लोग काम नहीं कर पा रहे थे और जिनकी आमदनी घट गई थी, उन्हें इस योजना से कुछ पैसे मिले और उनका गुजारा हुआ। मनमोहन सरकार पारदर्शिता को मिला बढ़ावा: अरुणा रॉय एनएसी की सदस्य रहीं अरुणा रॉय ने कहा कि मनमोहन सिंह सरकार ने मनरेगा जैसी योजनाओं में पारदर्शिता को बढ़ावा दिया और सामाजिक ऑडिट की शुरुआत की। सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि योजना के लाभ सभी ग्रामीण परिवारों तक पहुँचें
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