मनी लॉन्ड्रिंग के लिए सरकारी कर्मचारियों पर मुक़दमे के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 जो सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अपराध का संज्ञान लेने के लिए सरकार से पूर्व अनुमति अनिवार्य करती है, वह मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम पर भी लागू होगी.की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए यह बात कही.

ईडी, जिसने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी, ने तर्क दिया कि आचार्य सीआरपीसी की धारा 197 के अर्थ में लोक सेवक नहीं हैं, क्योंकि यह नहीं कहा जा सकता कि उक्त पद पर रहते हुए उन्हें सरकार की मंजूरी के बिना पद से हटाया नहीं जा सकता था. लेकिन अदालत इससे सहमत नहीं थी. पीठ ने कहा कि धारा 197 के तहत अपेक्षित पहली शर्त दोनों प्रतिवादियों के मामले में पूरी होती है क्योंकि वे सिविल सेवक हैं. साथ ही, उनके खिलाफ लगाए गए आरोप उन्हें सौंपे गए कर्तव्यों के निर्वहन से संबंधित हैं और इस प्रकार धारा 197 की प्रयोज्यता के लिए दूसरी शर्त भी पूरी होती है.

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘हमने पीएमएलए के प्रावधानों का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया है. हमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं मिला जो सीआरपीसी की धारा 197 के प्रावधानों से असंगत हो. सीआरपीसी की धारा 197 के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इसकी प्रयोज्यता को तब तक खारिज नहीं किया जा सकता जब तक कि पीएमएलए में ऐसा कोई प्रावधान न हो जो धारा 197 से असंगत हो. हमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया गया है. इसलिए, हम मानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 197 के प्रावधान पीएमएलए की धारा 44 के तहत शिकायत पर लागू होते हैं.

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