महाकुंभ 2025: महाकुंभ में डुबकी लगाने के बाद प्रयागराज के इन मंदिरों में जरूर करें दर्शन

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महाकुंभ 2025: महाकुंभ में डुबकी लगाने के बाद प्रयागराज के इन मंदिरों में जरूर करें दर्शन
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प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आगाज हो चुका है. इस 45 दिन के धार्मिक उत्सव में अगर आप भी शामिल होने वाले हैं तो आपको जान लेना चाहिए कि महाकुंभ स्नान के बाद प्रयागराज के किन मंदिरों में आप दर्शन के लिए जा सकते हैं.

प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आगाज हो चुका है. देश दुनिया से लोग इस बड़े धार्मिक उत्सव में शामिल होने के लिए प्रयागराज आ रहे हैं. इस 45 दिन के धार्मिक उत्सव में अगर आप भी शामिल होने वाले हैं और प्रयागराज की यात्रा करने वाले हैं तो आपको जान लेना चाहिए कि महाकुंभ स्नान के बाद प्रयागराज के किन मंदिरों में आप दर्शन के लिए जा सकते हैं. आइए जानें कि त्रवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाने के बाद प्रयागराज के वो कौन से प्रसिद्ध मंदिरों में दर्शन के लिए जा सकते हैं.

देश में वैसे तो हनुमान जी के अनेक मंदिर हैं लेकिन सभी मंदिरों में प्रयागराज का ये मंदिर अनोखा है क्योंकि हनुमान जी की लेटी हूई मूर्ति केवल और केवल प्रयागराज के मंदिर में ही है. हनुमान जी की लेटी हुई मूर्ति के कारण ही इस अनोखे मंदिर का नाम लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर है. हनुमान जी की यह प्रतिमा 20 फिट की है. मंदिर को लेकर मान्यता है कि लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन अगर संगम में स्नान के बाद करें तो विशेष कृपा बरसती है. बिना हनुमान जी के दर्शन किए संगम स्नान व्यर्थ है.प्रयागराज में नागवासुकी मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है. इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथाओं के जिक्र होता है कि जब समुद्र मंथन नागवासुकी को रस्सी की तरह उपयोग में लाया गया तो नागराज वासुकी घायल हो गए. जिस पर भगवान विष्णु ने उन्हें सलाह दी कि प्रयागराज में उन्हें विश्राम करना चाहिए. यही कारण है कि नागराज वासुकी यहां पर विराजमान हैं. महाकुंभ की डुबकी लगाने के बाद आप भी जरूर नागवासुकी मंदिर में दर्शन के लिए आए.प्रयागराज में अलोपी मंदिर की बहुत मान्यता है. यह मंदिर शक्तिपीठों में से एक बताई जाती है. मंदिर में देवी दूर्गा की प्रतिमा की पूजा नहीं होती बल्कि यहां पर एक चुनरी में लिपटा पालना स्थापित है उसी की पूजा की जाती है. दरअसल, मां दुर्गा को प्रयागराज में अलोपशंकरी के रूप में पूजा जाता है. पौराणिक कथा है कि माता सती के दाहिने हाथ का पंजा इसी जगह पर गरा लेकिन गायब हो गया, यही कारण है कि माता को यहां पर अलोप शंकरी के रूप में पूजा जाता है. प्रयागराज आए तो इस मंदिर में जरूर पालने का दर्शन पाएं.प्रयागराज में एक बरगद का पेड़ है जिसकी काफी धार्मिक मान्यता है. बहुत पुराने इस बरगद के पेड़ को अक्षयवट के रूप में जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि यह पेड़ तीन हजार साल से भी ज्यादा पुराना है और लोग दूर-दूर से पेड़ के दर्शन के लिए आते हैं. महाकुंभ में डुबकी लगाने के बाद इस अक्षयवट के दर्शन का लाभ आप भी ले सकते हैं. Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है

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