महाकुंभ में ग्लैमर से वैराग्य, प्रोफेशनल युवाओं का सनातन संस्कृति प्रति आकर्षण

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महाकुंभ में ग्लैमर से वैराग्य, प्रोफेशनल युवाओं का सनातन संस्कृति प्रति आकर्षण
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महाकुंभ में बढ़ते आकर्षण के साथ प्रोफेशनल युवाओं का सनातन संस्कृति प्रति आकर्षण देखने को मिल रहा है। दुनिया भर से आने वाले युवाओं में संतों से दीक्षा लेकर साधु बनने की चाहत देखी जा रही है।

आनंद त्रिपाठी, प्रयागराज: महाकुंभ की छटा देखते ही बन रही है। संगम तट पर बसी विश्व की सबसे बड़ी अस्थायी नगरी में देश-दुनिया भर के श्रद्धालु आस्था और संस्कृति के इस महासंगम के गवाह बन रहे हैं। मगर इस बार के महाकुंभ में एक नई बात देखने को मिल रही है, वह है प्रोफेशनल युवाओं का पुरातन सनातन संस्कृति के प्रति बढ़ता आकर्षण। दुनिया की कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम कर चुके युवा भी यहां आकर कल्पवास कर रहे हैं। कई युवा और प्रोफेशनल्स तो यहां संतों से दीक्षा लेकर साधु बन जा रहे हैं। इसमें ग्लैमर की

दुनिया छोड़कर आई युवतियां भी हैं और IIT जैसे संस्थानों से इंजीनियरिंग कर चुके प्रोफेशनल्स भी। साथ ही कई डॉक्टर भी हैं, जो मोह-माया छोड़कर जोगी बन रहे हैं। साइंस केवल भैतिक जगत- इंजीनियर बाबा हरियाणा निवासी और IIT बॉम्बे के पूर्व छात्र अभय सिंह अब संत बन चुके हैं। वह इंजीनियर बाबा के नाम से जाने जा रहे हैं। वह एयरोस्पेस टेक्नॉलजी के अपने गहन ज्ञान का उपयोग करते हुए कॉपी और डायग्राम के जरिए लोगों को अध्यात्म का महत्व समझा रहे हैं। वह कहते हैं कि साइंस केवल भौतिक जगत को समझाने का माध्यम है, लेकिन इसका गहन अध्ययन हमें अध्यात्म की ओर ले जाता है। ग्लैमर छोड़ हर्षा रिछारिया बनीं संन्यासी उत्तराखंड निवासी हर्षा रिछारिया ग्लैमर इंडस्ट्री का हिस्सा रही हैं। उन्होंने महाकुंभ में सनातन धर्म की दीक्षा ली। उन्होंने कहा कि प्रोफेशनल लाइफ में दिखावे और आडंबर से भरी जिंदगी ने मुझे उबा दिया। मैंने महसूस किया कि वास्तविक सुख-शांति केवल सनातन धर्म की शरण में ही है। स्वामी कैलाशानंद गिरि से दीक्षा लेने के बाद मैंने जीवन का नया अर्थ समझा है।इजरायल छोड़ बन गए सनातनी इजरायल के रहने वाले दयानंद दास (दीक्षा के बाद का नाम) वहां टीचर थे। मगर 20 साल पहले उन्होंने टीचिंग छोड़कर भारत और सनातन का रास्ता चुना। अब दयानंद ज्यादातर समय वाराणसी में रहते हैं और लोगों को योग की शिक्षा देते हैं। हमास और इस्राइल युद्ध का जिक्र किए बिना दयानंद कहते हैं कि युद्ध के लिए दुनिया में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। शांति और ईश्वर की प्राप्ति यही मानव जीवन का उद्देश्य होना चाहिए।मन हुआ वैरागी तो भरत बन गए भरतर्षभा मन में उठ रहे प्रश्नों के उत्तर के लिए बेंगलुरु निवासी भरत कुमार ने वैराग्य जीवन अपना लिया। अब वह भरतर्षभा दास महाराज हैं। 10 वर्षों से वृंदावन में रह रहे भरत का सपना कभी सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना था। 1992 में NIT केरल में दाखिला लिया, मगर मन अशांत रहा। गीता, पुराण और इस्कॉन के गुरु की जीवनी पढ़ने के बाद वह हरे कृष्णा मूवमेंट से जुड़ गए। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक बन गया सनातनी अमेरिका के फ्लोरिडा निवासी जॉनथन मिचेल पेशे से मनोवैज्ञानिक थे, लेकिन तमाम लोगों की मानसिक समस्याओं का समाधान करने वाला यह खुद अवसाद से घिर गया। तब मिचेल के एक मित्र ने उन्हें सनातन धर्म के बारे में बताया। इसके बाद वह साईं मां लक्ष्मी देवी मिश्रा के संपर्क में आए। जॉनथन हिंदू धर्म से इतना प्रभावित हुए कि 2007 में धर्म परिवर्तन कर लिया। अब वह ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और शाकाहारी बन गए हैं

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