सनातन धर्म की परंपरा में बदलाव, शाही स्नान को अमृत स्नान नाम दिया गया। 14 जनवरी से त्रिवेणी के तट पर अमृत स्नान की शुरुआत होगी।
सनातन धर्म की सदियों पुरानी परंपरा में अब एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। त्रिवेणी का तट भले ही बदलने का नाम न लें, लेकिन गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम वही रहेगा, लेकिन गुलामी के प्रतीक शब्दों से सनातन धर्म का पीछा छूट जाएगा। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर पहली बार दुनिया त्रिवेणी के तट पर अमृत स्नान करेगी। ना भूतों ना भविष्य की तर्ज पर त्रिवेणी का संगम सनातन धर्म के इतिहास में नया अध्याय जोड़ेगा। शाही स्नान अब अतीत के पन्नों में दर्ज हो जाएगा और महाकुंभ के साथ ही अमृत स्नान की शुरूआत होगी।
शैव, शाक्त और वैष्णव संप्रदाय के साधु-संत संगम में पहली बार अमृत स्नान के लिए प्रवेश करेंगे। महाकुंभ में देश ही नहीं दुनिया भर के साधु-संत और श्रद्धालु पांच अमृत स्नान करेंगे। संगम के तट पर शाही स्नान की शुरुआत मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को पहले अमृत स्नान के साथ होगी। दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या, तीसरा अमृत स्नान 12 फरवरी को माघ पूर्णिमा पर और अंतिम स्नान महाशिवरात्रि पर 26 फरवरी को होगा। बता दें कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शाही स्नान का नाम बदलकर अमृत स्नान कर दिया है। अखाड़ों के साथ ही शैव, शाक्त और वैष्णव संप्रदाय के साधु-संतों ने इस नए बदलाव का स्वागत किया है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि यह सनातन के अभ्युदय का काल है। महाकुंभ में त्रिवेणी के संगम से अमृत स्नान की शुरूआत एक नया अध्याय लिखेगी। हालांकि पौष पूर्णिमा पर त्रिवेणी के संगम में स्नान, दान और पुण्य की शुरूआत हो जाएगी
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