महाकुंभ में चूल्हा-कंडे का व्यापार

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महाकुंभ में चूल्हा-कंडे का व्यापार
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महाकुंभ में चूल्हा और कंडे का व्यापार बढ़ा है। कुम्हारों को महाकुंभ से आशा है, लेकिन जगह न मिलने से निराशा भी है.

महाकुंभ में विभिन्न प्रकार के व्यवसाय देखने को मिल रहे हैं। इसमें छोटे से बड़े व्यवसाय शामिल हैं। इसमें चूल्हा और कंडे बचने का व्यापार भी शामिल है। चूल्हे और कंडे निर्माण में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। इन चूल्हों को गंगा के किनारे की मिट्टी से बनाया जा रहा है। जबकि कंडों को गाय के गोबर से बनाया जा रहा है। दरअसल एक महीने तक कल्पवास करने आए श्रद्धालु इन्हें खरीद रहे हैं और इनपर खाना बना रहे हैं।चूल्हे और कंडे की महाकुंभ मेले में डिमांड मिट्टी के चूल्हे और कंडे के निर्माण से जुड़े लोगों

को महाकुंभ से बहुत आस है। उन्हें उम्मीद है कि इस धार्मिक मेले के दौरान उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। कुम्हार अशोकने एनडीटीवी से बातचीत करते हुए बताते हैं, 'कल्पवास में आए साधु-संत चूल्हा, कंडे लेते हैं। वो इसी पर खाना बनाते हैं। जबकि कई लोग लकड़ी भी लेते हैं। इनकी खूब मांग है। दुकान नहीं मिलने से कुम्हारों में निराशा मेले के दौरान दुकान के लिए जगह नहीं मिलने से अशोक और सीमा जैसे लोगों के मन में निराशा भी है।इनका कहना है कि अगर सामान बेचने के लिए जगह नहीं होगी तो व्यापार कैसे बढ़ेगा। कई कुम्हारों का मानना है कि अगर ठीक से ही व्यवसाय नहीं चल पाया तो उन्हें मेले के दौरान काम भी करना पड़ सकता है। अशोक और सीमा के अनुसार कुंभ के दौरान जो कमाई उनकी होगी, उससे ही उनका परिवार आने वाले त्योहारों को बेहतर तरीके से मना पाएगा। सीमा बताती हैं, हमें खुशी भी है और दुख भी है क्योंकि टीन लगा दिया गया, जगह नहीं दी गई। जगह मिलती तो हमारी बिक्री होती। लेकिन ऐसे तो हम बेंच नहीं पाएंगे। इन छोटे-छोटे व्यापारों से कई परिवारों का जीवनयापन हो रहा है। कुम्हार अशोक बताते हैं कि अगर मेले में काम ठीक से हो गया तो उनके परिवार का कुछ महीने का खर्चा चल जाएगा। सीमा बताती है कि अगर पूरा परिवार मेले में काम कर लेगा तो 20,000 से 30,000 की कमाई हो जाएगी। जिससे आनेवाले त्योहार में बच्चों को मिठाई और कपड़े खरीदे जा सकेंगे

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