परमाध्यक्ष चिदानंद मुनि ने महाकुंभ को मानवता का सबसे बड़ा महोत्सव और सनातन का गौरव बताया। उन्होंने संगम तट पर जो दुर्लभ संयोग देखने को मिला है, उसे समुद्र मंथन के परिणाम के रूप में व्याख्यायित किया और कुंभ को आत्ममंथन की यात्रा बताया।
विपरीत विचारों, मतों, पंथों को एक तट पर मिलाने की असीम ताकत रखने वाले संगम तट पर विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम के रूप में महाकुंभ की शोभा का वर्णन हर कोई अपने-अपने भावों में कर रहा है। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष चिदानंद मुनि देश-दुनिया से आए अपने अनुयायियों, सितारों, संतों, कथा मर्मज्ञों के समागम को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। वह समुद्र मंथन के परिणाम के रूप में सामने आए कुंभ के जरिये अभिसिंचित और पोषित होती विश्व संस्कृति के विविध पक्षों को किस रूप में देखते हैं। प्रस्तुत हैं उनसे...
। संगम तट पर दुर्लभ संयोग में लगे महाकुंभ को आप किस रूप में देखते हैं? महाकुंभ सनातन का गौरव है। मानवता का सबसे बड़ा महोत्सव है। समुद्र मंथन का परिणाम है। मंथन के बाद जो भी निकलता है, वही अमृततुल्य होता है। 144 वर्षों के बाद जो योग बना है, वह दुर्लभ है। सौभाग्यशाली है हमारी पीढ़ी, जो इस महाकुंभ की प्रत्यक्षदर्शी बनी है। महाकुंभ: स्वागतं यत्र धर्मः संस्कृतिः च जीवनस्य स्रोतः प्रवाहते। धर्म और संस्कृति के माध्यम से जीवन के वास्तविक स्रोत का प्रवाह महाकुंभ में देखा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में...
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