मुकेश चंद्रकार की हत्या ने स्थानीय पत्रकारिता के भविष्य को लेकर चिंता जगाई है. बस्तर जंक्शन चैनल के माध्यम से मुकेश बस्तर जिले की वास्तविकताओं को दुनिया को दिखाते थे. इसके अलावा,मुख्य विषय स्थानीय पत्रकारों की सुरक्षा की चिंता, वेतन और सम्मान की देयता है.
मुकेश चंद्रकार की हत्या के आरोप में गिरफ्तारियां तो हो गई हैं लेकिन देखना होगा कि पुलिस की जांच कैसी होगीमुकेश चंद्राकर का यूट्यूब चैनल ' बस्तर जंक्शन ' देश के सबसे पिछड़े इलाकों में एक, बस्तर जिले का आइना है. किसी नदी पर लोगों द्वारा बनाया गया जुगाड़ वाला पुल हो, किसी सुदूर गांव में पहली बार खुला कोई स्कूल हो, साफ पानी की कमी हो, माओवादियों की हिंसा हो या खेतों में आईईडी के चपेट में आने से बच्चों की मौत हो, मुकेश के सारे वीडियो बस्तर की कहानी कहते हैं.
हालांकि कई मुश्किलों से जूझते हुए स्वतंत्र जमीनी पत्रकारिता करते रहने की जो कीमत मुकेश ने अदा की है, वो उनके यूट्यूब चैनल ही नहीं बल्कि पूरे देश में पत्रकारिता के भविष्य पर एक बड़ा सवालिया निशान छोड़ गई है.अखबार हों या टीवी चैनल, बड़े मीडिया संगठनों के लिए बिना मुकेश जैसे स्थानीय पत्रकारों की मदद के बस्तर जैसे इलाकों की खबरें दिखाना असंभव है. स्थानीय पत्रकार ही उन्हें खबर के बारे में बताते हैं, उसकी फुटेज शूट करके भेजते हैं या शूट करने में मदद करते हैं और खबर से जुड़े लोगों से साक्षात्कार दिलाते हैं. इतने भारी योगदान के बावजूद स्थानीय पत्रकारों को ना तो नियमित वेतन मिलता है और ना अच्छा मेहनताना. इसके अलावा जहां मीडिया संगठन सिर्फ अपने संवाददाताओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं, स्थानीय पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता. अक्सर इन्हें खबर का श्रेय भी नहीं दिया जाता.छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में स्थानीय पत्रकार होने के अलग ही माने हैं. लंबे समय से माओवाद की चपेट में रहने की वजह से इस राज्य का एक अपना अलग ही चरित्र बन गया है, जिसमें दूसरे राज्यों के पत्रकारों के मुकाबले यहां के पत्रकारों के जोखिम बढ़ गए हैं. कभी गोलीबारी तो कभी आईईडी ब्लास्ट की वजह से जान का खतरा रहता है. इसके अलावा एक तरफ सरकार का दबाव रहता है तो दूसरी तरफ माओवादियों का दबाव और साथ ही भ्रष्टाचार करने वाले अन्य ताकतवर लोगों का दबाव भी रहता है. मुकेश की ही तरह एक और यूट्यूब चैनल 'बस्तर टॉकीज' चलाने रानू तिवारी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा,'मीडिया संस्थानों को पता है कि अगर सरकार के खिलाफ कोई खबर दिखानी है, तो उसमें किस स्तर तक जाना है और कब रुक जाना है. क्योंकि अगर आप एक स्तर से आगे बढ़े तो खबरें चलेंगी ही नहीं, गिरा दी जाएंग
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