लबरेज़ की किताब 'लव इन बालाकोट' के बारे में लेख, जिसमें पाकिस्तान के बालाकोट में दो देशों की नफ़रतों से घिरे प्यार की कहानी दिखाई जाती है।
“मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती,हमारे दरमियां ये फ़ासले, कैसे निकल आए.” उर्दू शायर ख़ालिद मोईन अपने इस शेर के ज़रिए बताने की कोशिश करते हैं, “प्यार सरहदों से परे होता है. कोई भी हद और सरहद बना दी जाए, इसके रास्ते में अड़चन नहीं आ सकती.” इन्हीं ख़यालों से लबरेज़ एक सच्चे वाक़ये पर आधारित है ‘लव इन बालाकोट’. किताब में इसके साथ और भी कई कहानियां हैं. पाकिस्तान के बालाकोट का वाक़या इसका सबसे ज़रूरी हिस्सा है, जो दो मुल्कों की नफ़रतों के बीच तंग और ख़तरनाक गलियों में पनपे प्यार की कहानी है.
इस कहानी में एक पेच और है कि एक दफ़ा मुख़्तार को साबिया का इनकार भी झेलना पड़ा था, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि साबिया ख़ुद उसका हाल जानने के लिए अपने क़दमों से चलकर आई? इसका जवाब भी कहानी में मौजूद है.Advertisementहालात और मज़बूरी, अम्मी-अब्बू और वतन छूटने का दर्द, साबिया की मोहब्बत, शर्तें और ज़िंदगी के उसूल… मुख़्तार की ज़िंदगी इन्हीं अल्फ़ाज़ की दुनिया बनकर रह गई थी.
MOHBAT BALAKOYT LÜBÜBUN BALAKOYT LÜBÜBUN NOKTASI SAHIRLER
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