मोहम्मद रफी, हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय सिंगर, आज अपना 100वां जन्मदिन मना रहे होते। उनके जीवन के बारे में जानें, जिसमें उनकी शुरुआती दिनों से लेकर संगीत के प्रति जुनून तक
हिंदी सिनेमा में कई सुपरस्टार आए लेकिन उन्हें सुपरस्टार बनाने वाले एक ही फनकार थे जिनकी जादुई आवाज की दीवानी पूरी दुनिया थी. बदलते इस जमाने में आज भी जब उनके गीतों का तराना छेड़ा जाता है तो लोग उन्हें याद करते नहीं थकते. जी हां.. बात हो रही है हिंदी संगीत को देश-विदेश में नई पहचान देने वाले सुरों के जादूगर मोहम्मद रफी की जिनके ना जाने कितने ही हिट गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं. जैसा कि... तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे...
आज की जनरेशन इस जादू से अछूती रही लेकिन एआई के जरिए उन्होंने उस आवाज को एक बार फिर सबके बीच ला दिया. एक बार फिर फैन्स के दिलों वो यादें ताजा हो गईं. आज अगर रफी जिंदा होते तो उनका 100वां जन्मदिन होता. इस मौके पर चलिए बताते हैं कि सिंगर बनने से पहले वो क्या किया करते थे. लाहौर में बीता रफी का बचपन रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को अमृतसर के कोटला सुल्तान सिंह गांव में हुआ था. वह 6 भाईयों में दूसरे नंबर के थे. कुछ समय बाद इनका परिवार लाहौर शिफ्ट हो गया. यहां वे एक सैलून चलाने लगा. कुछ रिपोर्ट्स में कहा जाता है कि रफी के पिता सैलून चलाते थे और कुछ में दावा किया जाता है कि रफी के बड़े भाई ये काम संभालते हैं. खैर जो भी था इसमें रफी भी उनकी मदद करते थे. पढ़ाई-लिखाई में रफी की कोई खास दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वो भी दुकान पर बैठा करते थे और भाई का हाथ बटाया करते थे. यहां काम करते हुए उनका सामना एक फकीर से हुआ. रफी को फकीर के गाने का अंदाज बहुत पसंद आता था. वे कई बार उसकी नकल किया करते और कभी कभी तो उसके साथ ही सड़कों पर गाने निकल जाते थे. तो आप कह सकते हैं कि एक इंस्पिरेशन या प्रेरणा उन्हें यहीं से मिली. बाद में रफी ने उस्ताद अब्दुल वाहिद खान, पंडित जीवन लाल मट्टू और फिरोज निजामी से क्लासिकल म्यूजिक सीखा. रफी की पहले पब्लिक परफॉर्मेंस 13 साल की उम्र में हुई थी. उन्होंने के केएल सहगल के लिए गाया था. साल 1941 में उन्होंने पंजाबी फिल्म गुल बलोच से बतौर प्लेबैक सिंगर शुरुआत क
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