यूक्रेन में शांति के लिए 90 से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि स्विट्जरलैंड पहुंचे. यह कोशिश कितनी कामयाब हो सकती है, इस पर अलग-अलग राय है. बैठक में भारत शामिल तो हुआ, लेकिन स्विट्जरलैंड और यूक्रेन की कोशिशों के मुताबिक नहीं.
यूक्रेन में न्यूक्लियर प्लांटों की हिफाजत, खाद्य आपूर्ति की सुरक्षा, युद्ध बंदियों और बच्चों की वापसी जैसे मुद्दों पर सहमति बनाना सम्मेलन के मुख्य विषयों में शामिल रहा. यूक्रेन का कहना है कि युद्ध की शुरुआत से अबतक लगभग 20,000 बच्चों को रूस या रूसी कब्जे वाले इलाकों में ले जाया गया है. रूस इससे इनकार करता है.के आखिरी दिन 16 जून को एक प्रस्ताव पारित करने पर सहमति बनाने की कोशिश हो रही है.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इटली में हुए जी7 सम्मेलन में हिस्सा लिया, लेकिन वह स्विट्जरलैंड नहीं आए. भारत ने विदेश मंत्रालय के एक सचिव को प्रतिनिधित्व के लिए भेजा.वार्ता की सफलता पर संदेह की एक बड़ी वजह है, रूस की गैर-मौजूदगी. युद्ध रोकने के लिए रूस पर दबाव बनाना, उसे वार्ता की मेज पर लाना जरूरी है. साथ ही,जैसे रूस के मित्र देशों को शांति प्रयासों में भागीदार बनाना भी जरूरी है.
इन सवालों के बीच स्विट्जरलैंड की राष्ट्रपति वियोला एमहर्ड ने स्पष्ट किया कि सम्मेलन के लक्ष्य बहुत महत्वाकांक्षी नहीं हैं. उन्होंने कहा,"हमारे लक्ष्य सीमित हैं." एमहर्ड ने कहा कि सम्मेलन का मकसद स्थायी शांति कायम करने की प्रक्रिया को प्रेरणा देना है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून दुनिया में व्यवस्था बनाए रखने के आधार हैं और"रूस का हमला बेहद गंभीर तरीके से इसका उल्लंघन करता है."स्विट्जरलैंड पिछले कई महीनों से इस सम्मेलन को सफल बनाने की कोशिश कर रहा था.
फाजल ने जोर दिया कि इन देशों की भागीदारी ना केवल रूस को एक संदेश देगी, बल्कि भविष्य में जब कीव और मॉस्को वार्ता के लिए साथ आएंगे, तब भी भारत जैसे देश बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में फाजल ने कहा,"भारत दुनिया का दोस्त है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय सच में उम्मीद करता है कि भारत इस शांति प्रक्रिया में योगदान दे." लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने लोकसभा चुनाव 2024 का हवाला देकर कहा कि उसने अभी शामिल होने पर फैसला नहीं किया है.
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