यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में शिक्षक बनने के लिए नए नियम जारी किए हैं। अब यूजीसी नेट या पीएचडी वाले विषयों के आधार पर शिक्षक बन सकेंगे। इससे उच्च शिक्षा में लचीलापन और समावेशिता बढ़ेगी।
अब यूजीसी नेट या पीएचडी वाले विषयों के आधार पर विश्वविद्यालय ों में शिक्षक बन सकेंगे। पहले यूजी, पीजी और पीएचडी एक ही विषय में होनी जरूरी होती थी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत विश्वविद्यालय ों में शिक्षक बनने की प्रक्रिया में लचीलापन लाया गया है। विश्वविद्यालय ों में दो तरह के नियम ित शिक्षक होंगे। जबकि तीसरे वर्ग में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत उच्च शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी सीटों पर तीन साल तक के लिए इंडस्ट्री या अपने क्षेत्र के दिग्गज शिक्षक बनकर सेवाएं दे सकते हैं। खास बात यह
है कि खेलों को बढ़ावा देने के मकसद से पहली बार यूजीसी ने शिक्षक नियमों में बदलाव कर पैराओलंपिक समेत कई अन्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों व अवार्डी को शामिल किया है। दिव्यांग खिलाड़ियों को फिजिकल फिटनेस टेस्ट से बाहर रखा गया है। स्नातक डिग्री के साथ एशियन पैरा गेम्स, पैरा स्पोर्ट्स, कॉमनवेल्थ गेम्स, एशियन गेम्स, एशिया कप, भारतीय स्पोर्ट्स के राष्ट्रीय विजेता सीधे अस्सिटेंट डायरेक्टर इन फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स या अस्सिटेंट प्रोफेसर बन सकेंगे। यूजीसी अध्यक्ष प्रोफेसर एम जगदीश कुमार ने बताया कि 23 दिसंबर को आयोजित आयाेग की बैठक में यूजीसी रेग्यूलेशन 2025 के मसौदे को मंजूरी दी गई है। इस रेग्यूलेशन का मकसद, भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में संकाय सदस्यों की भर्ती और पदोन्नति के तरीके को बदलना है, जो संकाय भर्ती और कैरियर प्रगति में लचीलापन, समावेशिता और उत्कृष्टता को बढ़ाते हैं। ऐसे समझें भर्ती प्रक्रिया अभी तक विश्वविद्यालयों में शिक्षक बनने के लिए यूजी, पीजी व पीएचडी एक ही विषय मे होना अनिवार्य था। लेकिन नए नियमों में सिर्फ पीएचडी और यूजीसी नेट में से किसी भी विषय को आधार बनाकर शिक्षक बन सकेंगे। अस्सिटेंट प्रोफेसर बनने के लिए यूजीसी नेट या पीएचडी जरूरी रहेगी। जबकि राज्यों के विश्वविद्यालयों में अस्सिटेंट प्रोफेसर के लिए स्टेट एलिजिबिलिटी टेस्ट आधार हो सकता है। लेकिन अस्सिटेंट प्रोफेसर से एसोसिएट और प्रोफेसर पद के लिए पदोन्नित में पीएचडी अनिवार्य रहेगी। इससे एनईपी 2020 के तहत उच्च शिक्षा में बहु-विषयक पारिस्थितिकी तंत्र मजबूत होगा। इसके अलावा पुस्तकों, पुस्तक अध्यायों और शैक्षणिक योग्यताओं के प्रकाशन में भारतीय भाषाओं पर जोर दिया गया है
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