यूपी पुलिस की एनकाउंटर शैली पर फिर उठे सवाल

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उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में लूट के अभियुक्त की कथित पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत को लेकर सियासी घमासान तो मचा ही हुआ है, पुलिस की एनकाउंटर कार्य शैली पर भी सवाल उठ रहे हैं.

यूपी के सुल्तानपुर जिले में 28 अगस्त को एक गहने की दुकान में डकैती हुई जिसमें करीब दो करोड़ रुपये के कीमती सामान लूट लिए गए. पुलिस ने धर-पकड़ शुरू की और छह दिन बाद यानी तीन सितंबर को एक मुठभेड़ में तीन लोगों को घायल कर गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन यानी चार सितंबर को एक व्यक्ति ने अदालत में समर्पण कर दिया और छह सितंबर को यूपी की स्पेशल टास्क फोर्स ने मंगेश यादव नाम के एक अभियुक्त को मुठभेड़ में मार गिराया. इस घटना के कई अभियुक्त अभी भी फरार हैं.

मंगेश के परिजनों ने आरोप लगाया कि दो दिन पहले उसे एसटीएफ वाले पूछताछ के लिए घर से उठा ले गए थे और फिर मुठभेड़ में उसके मारे जाने की खबर आई. परिजनों का आरोप है कि यह एनकाउंटर नहीं बल्कि हत्या है. उसके बाद इस एनकाउंटर को लेकर सियासी घमासान भी तेज हो गया. यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अलावा लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी इस मामले में राज्य की योगी सरकार पर निशाना साधा.यूपी में एनकाउंटर की यह नई घटना नहीं है जिस पर सवाल उठे हों, बल्कि ऐसा आए दिन होता है.

इससे पहले भी यूपी में कई मुठभेड़ हो चुके हैं और कई लोग मारे जा चुके हैं. हर बार मुठभेड़ के पीछे एक जैसी स्थिति बताई जाती है, अपराधी भागने की कोशिश कर रहा था, रोकने की कोशिश की गई, उसने पुलिस बल पर हमला किया, पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई.आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले सात साल में मुठभेड़ यान एनकाउंटर की 12 हजार से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें अब तक 207 अभियुक्त पुलिस की गोली से मारे जा चुके हैं और साढ़े छह हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में ऐसे एनकाउंटरों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि न्याय हासिल करना किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है. अदालत का कहना है कि उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील शैलेश सिंह कहते हैं कि एनकाउंटर या फिरको आम जनता का समर्थन मिलने का मतलब है न्यायपालिका और न्यायिक प्रक्रिया में लोगों का विश्वास कम हो रहा है.

हालांकि, फर्जी एनकाउंटरों के तमाम मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में 16 बिंदुओं की एक गाइड लाइन तैयार की थी और एनकाउटंर के बाद इसका पालन करना अनिवार्य किया गया है. इसी गाइडलाइन के तहत एनकाउंटर में हुई सभी मौतों की मजिस्ट्रेट से जांच अनिवार्य किया गया है. मौत के बाद तत्काल राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग को सूचित करने को भी इसमें जरूरी बनाया गया है.

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