उत्तर प्रदेश की हार से बीजेपी सबक सीखती नजर नहीं आ रही है. मोदी सरकार के नए मंत्रिमंडल को देखकर तो ऐसा ही लग रहा है. न दलित वोटों को सहेजने की चिंता नजर आती है, और न ही सवर्ण वोटों के लिए पार्टी कुछ करती नजर आ रही है.
नरेंद्र मोदी सरकार की तीसरी पारी चुनौतीपूर्ण है. एक तरफ सरकार बचाए रखने की चुनौती है तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी को फिर से पूर्व बहुमत में लाने और राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत सुनिश्चित करने का यत्न करना है. पर नए मंत्रिमंडल में जिस तरह विभाग बांटे गए हैं उसे देखकर तो यही लगता है कि पार्टी भविष्य के चुनावों को लेकर गंभीर नहीं है. विशेषकर उत्तर प्रदेश की हार से मिले सबक को भी ध्यान में नहीं रखा गया है.
सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार इस बार एनडीए को गैर-जाटव दलितों का केवल 29 प्रतिशत वोट मिला, जो 2019 में मिले 48 प्रतिशत से काफी कम है. भाजपा के लिए यह शोचनीय विषय हो सकता है कि जो पार्टी वर्षों से गैर-जाटव दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही थी, इस बार उलटफेर कैसे हो गया.हालांकि एनडीए ने जाटवों के बीच अपने वोट शेयर में सुधार किया है. 2019 में उसे जाटवों का सिर्फ 17 फीसदी वोट मिला था, जबकि 2024 में उसका वोट शेयर बढ़कर 24 फीसदी हो गया.
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