वैज्ञानिकों ने 19वीं सदी के रहस्यमयी और सबसे शक्तिशाली ज्वालामुखी की खोज की है. जिसका असर ऐसा हुआ की पूरी पृथ्वी ही ठंडी हो गई थी. ज्वालामुखी का नाम जावरित्स्की है और यह कुरिल द्वीप समूह के सुमिशिर द्वीप में पाया गया है.
ज्वालामुखी पृथ्वी के लिए हमेशा से ही खतरे की घंटी रहे हैं और भविष्य में भी बड़ी संभावित आपदा के संकेत हो सकते हैं. ऐसे में पृथ्वी के हर कोने के ज्वालामुखी बारे में जानना वैज्ञानिक ों के लिए बहुत ही जरूरी है. इस तलाश के बीच में वैज्ञानिक ों ने 19वीं सदी का रहस्यमयी लेकिन सबसे शक्तिशाली और खतरनाक ज्वालामुखी की खोज की है. जिसका असर ऐसा हुआ की पूरी पृथ्वी ही ठंडी हो गई थी. दिलचस्प बात ये है कि वैज्ञानिक ों को इस ज्वालामुखी से हुए विस्फोट ों के इतिहास की जानकारी तो थी.
लेकिन वे यह पता नहीं कर पा रहे थे कि ये आए कहां से थे. लेकिन एक रोचक अध्ययन से मिले सुरागों ने उन्हें सही और सटीक प्रमाण दिए और गुत्थी सुलझ सकी. कहां है ये रहस्यमयी ज्वालामुखी यह ज्वालामुखी आज के जापान और रूसे के बीच उत्तरी प्रशांत महागार में कुरिल द्वीप समूह के सुमिशिर द्वीप में पाया गया है. खास बात ये है कि इस ज्वालामुखी की वजह से उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान एक डिग्री तक कम हो गया था. अब वैज्ञानिकों ने पाया कि ही धरती को ठंडा कर देने वाला यह ज्वालामुखी साल 1831 में फटा था. विवादित इलाके में ज्वालामुखी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में प्रकाशित इस शोध में वैज्ञानिकों ने 1831 में हुए शक्तिशाली ज्वालामुखी का सटीक स्थान उत्तर पश्चिमी प्रशांत महासागर में खोज निकाला है. इस रहस्यमयी ज्वालामुखी का नाम जावरित्स्की (Zavaritskii or Zavaritsky) है. लेकिन जिस सिमूशिर द्वीप पर यह ज्वालामुखी है उसको लेकर जापान और रूस में विवाद चल रहा है. वैज्ञानिकों को कतई उम्मीद नहीं थी कि वह ज्वालामुखी इतनी दूर निर्जन इलाके में मिलेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons) ग्रीनलैंड में मिले सबूत? वैज्ञानिकों के विश्लेषण के मुताबिक जावरित्स्की में पिछला विस्फोट साल 800 ईसा पूर्व हुआ था. रोचक बात ये है कि शोधकर्ता इस ज्वालामुखी विस्फोट के बारे में तो जानते थे कि यह किस साल हुआ था. लेकिन वे इसका सटीक स्थान नहीं पता कर सके थे. लेकिन ग्रीनलैंड में मिले बर्फ के टुकड़ों के नमूनों का अध्ययन करने पर उन्हें जरूरी जानकारी मिली थी. शोधकर्ताओं ने इन बर्फ के टुकड़ों में सल्फऱ के आइसोटोप का अध्ययन किया जो कि ज्वालामुखी की राख और अन्य टुकड़ों के तौर पर 1831 और 1834 के बीच में जमा हो गए थे
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