बोले और सुने जा रहे के बीच जो दूरी है, वह एक आकाश है...हमारे दौर के महत्त्वपूर्ण कवि राजेश जोशी आज 75 साल के हो गए. साहित्य आजतक की ओर से बधाई लेख | RajeshJoshi
मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ में 18 जुलाई, 1946 में जन्मे राजेश जोशी पचहत्तर के हो गए. वे हिंदी के बहुत नफीस कवियों में हैं, जिनके यहां जितनी अर्थ की बारीकियां हैं उतनी ही अपने समय के सरोकारों से परिचालित होने का जज्बा. आठवें दशक के कवियों में जो खास बात देखी जाती है वह यह कि प्राय: प्रतीकों में कविताओं को विन्यस्त किया जाता रहा है. 'समरगाथा' नामक लंबी कविता से चर्चित राजेश जोशी के आगे चल कर कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए.
इस प्रबंधन-साध्य समय में सबसे ज्यादा जो चीजें असाध्य हैं, वे हैं हमारे स्वप्न और स्मॄतियाँ. एक नई करवट लेते सामाजिक पर्यावरण में जैसे इनके लिए कोई जगह नहीं रही. सफलताओं और महत्वाकांक्षाओं की हड़बड़ी ने सपनों, मिथकों और स्मृतियों को विस्मृति के गर्भ में ढकेल दिया है. मानवीय उच्चादर्शों, स्मृतियों, मिथकों और सपनों के विलोपन के इस दौर में अक़्सर हम उन कवियों की ओर देखते हैं, जिनके यहां इस ध्वंस और विचलन की महीन अंतर्ध्वनियां सुनाई देती हैं. राजेश जोशी की कविताएं इस दिशा में एक बड़ा काम करती हैं.
उनकी एक कविता 'दाग़' शीर्षक से है, जिसमें ग्रीस और आइल के दाग़-धब्बों से सनी कमीज पहनते हुए लेखक को शार्मिंदगी नहीं होती. हम यह न भूलें कि राजेश जोशी पहले ही यह लिख चुके हैं- कमीज़ पर जिनके दाग़ नहीं होंगे, मारे जाएंगे. अपने दाग़दार समय के बारे में राजेश जोशी की कविता 'मारे जाएंगे' एक सिग्नेचर ट्यून की तरह सराही गयी थी.
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