लखनऊ प्रशासन के एक एलान ने शहर के मशहूर रेस्तरां मालिकों के पसोपेश में डाल दिया है.
लखनऊ में जैसे ही रात होती है, वहां की हवा कोयले और तंदूर से पकाए गए कबाब और धीमी आंच पर पकने वाली बिरयानी की तेज़ सुगंध से भर जाती है. ख़ाने के शौकीन लोग न चाहते हुए भी इनकी ओर खिंचे चले आते हैं.
हालांकि, अब रेस्तरां मालिकों और खान-पान के शौकीनों को ये डर सता रहा है कि कबाब और बिरयानी जैसी चीज़ों को पकाने से उनका मूल और पारंपरिक स्वाद ही ख़त्म हो जाएगा. पुराने शहर के मुख्य चौक इलाके में सबसे पुराने टुंडे कबाब रेस्तरां में अब कोयले के तंदूर और भट्टियों के साथ एक बड़ा गैस स्टोव भी लगाया गया है. एक रेस्तरां में अपने परिवार के साथ तंदूरी कबाब लुत्फ़ उठा रहीं ग़ज़ाला परवीन कहती हैं, "असली मज़ा कोयले से आता है. इसमें जो स्वाद होगा वह कभी भी गैस पर बने कबाब में नहीं होगा. इतने सालों तक कोयले पर खाना बनता रहा तो पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता था. सड़क पर इतना प्रदूषण है, ये नहीं दिखता. उन्हें सिर्फ़ कोयले से परेशानी है."
इंद्रजीत सिंह का कहना है इन रेस्तरां मालिकों ने हमारी बातों को सुना और अपनी मर्ज़ी से गैस भट्टियां लगा लीं. उन्होंने कहा, "अब तक 100 लोग गैस भट्टियां लगा चुके हैं. ये स्वैच्छिक है, हम किसी पर दबाव नहीं डाल रहे हैं."लखनऊ के इमामबाड़ा रोड के दोनों किनारों पर दर्जनों छोटे-बड़े रेस्तरां हैं जो तरह-तरह के कबाब, बिरयानी, शीरमाल और तरह-तरह के व्यंजन परोसते हैं.
वह कहती है कि प्रशासन ने पूरी रिसर्च के बाद ही ये फ़ैसला लिया होगा क्योंकि इसके कई प्रभाव होंगे. उन्होंने कहा, "ऐसे कई व्यंजन हैं जिन्हें कोयले के बिना बनाने की हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी." इदरीस बिरयानी के मालिक मोहम्मद अबुबकर का कहना है कि स्वाद तो ऊपर वाले के हाथ में है, लेकिन सरकार को बीच का रास्ता निकालना चाहिए.
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