बॉयज़ और गर्ल्स लॉकर रूम जैसी जगहों का हिस्सा क्यों बन जाते हैं किशोर. कैसे माता-पिता उन्हें इसके बारे में समझा सकते हैं.
डॉक्टर पंकज कुमार का कहना है कि हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन ठीक तरह से नहीं दी जाती. जिन स्कूलों में इसे पाठ्यक्रम में शामिल भी किया गया है उनमें भी इसे जल्दी-जल्दी में निपटा दिया जाता है. शिक्षकों को खुद ये विषय समझाने में झिझक होती है. लेकिन, समय के साथ बच्चों में हार्मोनल बदलाव होते हैं. इन बदलावों से जूझता बच्चा अपनी उत्सुकता का समाधान अपने दोस्तों के बीच या इंटरनेट पर खोजता है.
दूसरी तरफ हमारे समाज में सेक्स विषय पर बात करना एक तरह से वर्जित है. इससे जुड़े सवालों पर बच्चों को टाल दिया जाता है. प्रेम संबंध परिवार के सम्मान का मुद्दा बन जाते हैं. इससे बच्चे को लगने लगता है कि उन्हें अपने सवालों का जवाब मां-बाप से नहीं मिलेंगे. डॉक्टर पंकज के मुताबिक, “वर्चुअल दुनिया में खुलापन, असल जीवन में संकीर्णता और फिर शरीर में आ रहे बदलाव. इस सबसे जूझते युवाओं को अपने सवालों और भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए ऐसी जगह नहीं मिलती जहां से उन्हें सही दिशा मिल सके. सच्चाई ये भी है कि हमारे समाज में सभी माता-पिता बच्चों से सेक्स एजुकेशन पर बात करने में सक्षम नहीं हैं, ऐसे में स्कूलों की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है.
इस ग्रुप में लड़के रेप की बात कर रहे हैं. वो ये नहीं समझते कि रेप जैसे अपराध की गंभीरता क्या है. उनमें महिलाओं के ख़िलाफ़ दूसरे अपराधों के लिए भी आगे चलकर संवेदनशीलता कम हो सकती है.क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर संजीता प्रसाद के मुताबिक़ बच्चों के व्यवहार में बदलाव का रास्ता परिवार से होकर ही जाता है. माता-पिता कुछ बातों पर खास ध्यान देकर बच्चे को सही दिशा दिखा सकते हैं-हमें ये देखना होगा कि हम बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, उनसे कितनी बातें करते हैं.
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