सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर किसी भी दल का कोई प्रत्याशी दोबारा चुनाव नहीं जीत सका है. क्या मेनका गांधी इस बार इतिहास बदल पाएंगी?
इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी राम भुआल निषाद, बीजेपी प्रत्याशी मेनका गांधी और बसपा उम्मीदवार उदराज वर्माउत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर लोकसभा क्षेत्र इन दिनों राजनीतिक समीकरणों को लेकर ख़ास तौर पर चर्चा में है.
वहीं मेनका गांधी लोकसभा चुनाव 2024 के लिए यहां से दोबारा नामांकन कर चुकी हैं. सवाल यह है कि क्या मेनका गांधी इस बार इतिहास बदल पाएंगी?कहते हैं, "देखिए, मेनका गांधी और उनको चुनौती दे रहे इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी राम भुआल निषाद दोनों ही बड़े नेता हैं, लेकिन दोनों ही बाहरी हैं." इस सीट पर गैर-यादव ओबीसी जातियों में निषाद और कुर्मी 2014 से ही भाजपा के साथ रही हैं. जबकि समाजवादी पार्टी ने यहां से निषाद प्रत्याशी के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री राम भुआल निषाद को मैदान में उतारा है.
"जहां तक रही बात कुर्मी और निषाद मतदाताओं के भाजपा से दूर जाने की तो हमें नुकसान होगा लेकिन बहुत ज़्यादा नहीं है. जो नॉन भाजपाई मतदाताओं का वर्ग है वही जातिगत आधार पर अपना पाला बदल सकता है."कहते हैं, "देश में इंडिया गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. इसे समझते हुए लोग इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी को वोट कर रहे हैं. यादव और मुस्लिम मतदाता हमारे साथ थे ही अब निषाद भी हमारे साथ हैं."
जातिगत आकलन के आधार पर दावा किया जाता है कि सुल्तानपुर लोकसभा में दलित एवं ब्राह्मण मतदाता सर्वाधिक हैं. "मेनका गांधी ने जिले का शहरीकरण और सौंदर्यीकरण कराया, ट्रैफिक जाम से निजात दिलाई, वेंडिंग ज़ोन का निर्माण कराया, जवाहर नवोदय विद्यालय और कृषि उद्यान केंद्र बनवाया."कहते हैं, "मेनका गांधी का राजनीतिक कद बहुत बड़ा है, सक्रिय नेता हैं, देश की राजनीति में महत्वपूर्ण एवं केंद्रीय भूमिका निभाने वाले गांधी परिवार की सदस्य हैं. उनके व्यक्तित्व के साथ यह एक अतिरिक्त विशेषता है. इन चीज़ों का लाभ भी उन्हें मिल रहा है.
पत्रकार राज खन्ना कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि पिछले चुनाव जितनी कठिन चुनौती का सामना मेनका गांधी को करना पड़ेगा. पिछले दस साल में नरेंद्र मोदी के शासनकाल में एक नया वोट बैंक सामने आया है, जो आवश्यकताओं और हितों की पूर्ति से जुड़ा हुआ है, जिसे लाभार्थी वोट बैंक भी कहते हैं." उनके मुताबिक़, "अवध को भाजपा ने साम्प्रदायिक या धार्मिक ध्रुवीकरण का केंद्र ज़रूर बनाया है लेकिन अवध में वे सूत्र भी हैं जो एकता कायम करते हैं. अवध किसान आंदोलन, समाजवादी आंदोलन और 1857 के आंदोलन का गढ़ रहा है."
इस हत्याकांड के ख़िलाफ़ भाजपा, सपा, शिवसेना और कांग्रेस जैसे दलों के ब्राह्मण नेता योगी आदित्यनाथ सरकार पर ठाकुरों का पक्ष लेने का आरोप लगाते हुए सड़क पर उतर आए थे. "पूरे मामले में मेनका जी की भूमिका नगण्य रही. हमारे जनपद में लगभग अहम पदों पर एक जाति के लोग बैठाए गए हैं. इन सबका यहां भाजपा पर बुरा प्रभाव पड़ना तय है."वहीं यहां युवाओं के लिए रोज़गार का मुद्दा भी है. सुल्तानपुर में रह कर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी करने वाली अंजली मिश्रा शिक्षक भर्ती न आने से काफी नाराज़ हैं.
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