साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पंजाब और हरियाणा के कई डेरों को बड़ा वोट बैंक माना जा रहा है. पंजाब में कितने हैं डेरे, कौन हैं इनके अनुयायी और क्या है उनका राजनीति में प्रभाव, जानिए इस रिपोर्ट में.
गुरु रविदास की जयंती से एक दिन पहले 23 फरवरी, 2024 को वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "ऐसा लगता है कि वाराणसी एक मिनी पंजाब बन गया है."
सिख धर्म के अस्तित्व में आने के साथ ही नए डेरों के अस्तित्व में आने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है. इनमें उदासी, निर्मले, निरंकारी, नामधारी आदि उल्लेखनीय हैं. ये डेरे लोगों को भजन-कीर्तन करने, शराब छोड़ने, नशे से दूर रहने और महिलाओं का सम्मान करने जैसे संदेश देते हैं. प्रोफ़ेसर नरेंद्र कपूर के अनुसार, ''ये डेरे लोगों की आदतों को सुधारने का भी काम करते हैं. महिलाएं अपने पतियों के साथ शिविर में जाती हैं. वे वह सब कुछ करते हैं जो डेरे वाले कहते हैं. अधिकतर महिलाएं न तो शराब पीती हैं और न ही मांस खाती हैं. वे अपने भटके हुए पतियों को इन जगहों पर ले जाती हैं.''पंजाब में करीब 32 फीसदी दलित आबादी है. डेरों से जुड़े ज़्यादातर लोग दलित समुदाय से हैं. इन डेरों द्वारा कई समाज सुधार के काम किए जाते हैं. डेरों से जुड़े लोग एक-दूसरे की मदद भी करते हैं.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रमोद ने बीबीसी से कहा कि नई उदारवादी आर्थिक व्यवस्था के साथ डेरों ने अपना स्वरूप बदल लिया है. डेरों ने अपनी एक कॉर्पोरेट पहचान बनाई है. इस डेरे के पंजाब और हरियाणा सहित भारत के लगभग हर शहर और कस्बे में सत्संग घर हैं, जहां साप्ताहिक सभाएं आयोजित की जाती हैं.डेरा सचखंड बल्लां पंजाब के दोआब क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक डेरों में से एक है. इसका मुख्य असर जालंधर और होशियारपुर लोकसभा सीटों पर है.
डेरा सचखंड बल्लां का संबंध समाज सुधारक बाबू मंगूराम मुगोवालिया से भी रहा है. मंगूराम की पृष्ठभूमि होशियापुर ज़िले के माहिलपुर कस्बे की थी. वह 1909 में पढ़ाई करने अमेरिका गए थे.पंजाब में निरंकारी और सिखों में हिंसक झड़पें होती रही हैं दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के प्रमुख आशुतोष 'महाराज' को डॉक्टरों ने चिकित्सकीय रूप से मृत घोषित कर दिया है, लेकिन उनका शव अभी भी डेरे में पड़ा हुआ है.यह डेरा जालंधर से करीब 34 कि.मी. दूर नूरमहल में है. इस डेरे का काफी प्रभाव है.
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