वंदे भारत के 'कवच' सिस्टम की क्या है खासियत: ​​​​​​​बाकी देशों के पास 90 के दशक से है तकनीक; खतरे-ओवरस्पीड ...

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वंदे भारत के 'कवच' सिस्टम की क्या है खासियत: ​​​​​​​बाकी देशों के पास 90 के दशक से है तकनीक; खतरे-ओवरस्पीड ...
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‘पूरी दुनिया 1990 के दशक में ही ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) सिस्टम पर जा चुकी है। यहां तक कि दुनिया के बड़े रेल नेटवर्क तो 80 के दशक में ही इस सिस्टम का इस्तेमाल करने लगे थे। लेकिन भारत को 2016 तक इंतजार करना पड़ा।Vande Bharat Kavach (Train Protection System) Safety Features Explained कवच एक ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (ATP) सिस्टम है। इस सिस्टम...

‘पूरी दुनिया 1990 के दशक में ही ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम पर जा चुकी है। यहां तक कि दुनिया के बड़े रेल नेटवर्क तो 80 के दशक में ही इस सिस्टम का इस्तेमाल करने लगे थे। लेकिन भारत को 2016 तक इंतजार करना पड़ा। आखिरकार पीएम नरेंद्र मोदी ने रेकवच के शुरुआती फेज के ट्रायल के समय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ये बयान दिया था। यहां वो स्वीकार करते हैं कि पूरी दुनिया में जिस तकनीक का इस्तेमाल 80 और 90 के दशक से हो रहा है, भारत में वो 2016 तक शुरू भी नहीं हो...

इस तकनीक को पूरी तरह भारत में तैयार किया गया है। इसे रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन ने भारतीय रेलवे के लिए बनाया है। RDSO ने तीन कंपनियों मेधा सर्वो ड्राइव्स प्राइवेट लिमिटेड, एचबीएल पावर सिस्टम लिमिटेड और केरनेक्स माइक्रोसिस्टम के साथ मिलकर तैयार किया है।दो ट्रेनों के बीच टक्कर रोकने के लिए कवच हाई फ्रिक्वेंसी रेडियो कम्युनिकेशन और ट्रेन की मूवमेंट का लगातार अपडेट रखता है। ट्रेनों पर लगी रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन का इस्तेमाल कर यह ट्रेन के ट्रैक पर पोजिशन का अपडेट...

इस टेस्टिंग के दौरान TCAS टेक्नोलॉजी से लैस दो ट्रेनों को एक ट्रैक पर एक ही दिशा में चलाने की अनुमति दी गई थी। इस दौरान दोनों ट्रेनें एक दूसरे से लगभग 200 मीटर की दूरी पर आकर अपने आप रुक गई थीं। इसके बाद इस टेक्नोलॉजी को सफल माना गया।2012 में हुई सफल टेस्टिंग के बावजूद न तो UPA और न ही NDA सरकार ने इस टेक्नोलॉजी पर काम आगे बढ़ाया। 10 साल बाद मार्च, 2022 में एक बार फिर से रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने दो अलग-अलग ट्रेनों पर सवार होकर इस टेक्नोलॉजी का परीक्षण...

देश में कुल 13,215 इलेक्ट्रिक इंजन हैं। इनमें सिर्फ 65 लोको इंजनों को ही कवच से लैस किया गया है। 2022-23 वित्तीय वर्ष में भारतीय रेलवे ने देशभर में कम-से-कम 5000 किलोमीटर रूट पर कवच लगाने का लक्ष्य रखा है।रेलवे के मुताबिक, यूरोप में इस्तेमाल होनी वाली टेक्नोलॉजी की तुलना में कवच स्वदेशी होने के साथ ही बेहद सस्ती भी है। इसे लगाने का खर्च 30 लाख रुपए प्रति किलोमीटर से 50 लाख प्रति किलोमीटर तक आता...

तो जवाब है इसकी कीमत। इसका सिर्फ एक रास्ता था कि भारत यहां की समस्याओं के मुताबिक अपना खुद का ऐसा सिस्टम विकसित करें। फिर आया साल 2012। भारत ने कवच को विकसित करने का काम शुरू किया।इसकी पहली वजह है देश में इंटरनेट की स्पीड। 2012 में जब इस तकनीकी को लेकर काम शुरू हुआ तब भारत में 4G मोबाइल नेटवर्क नहीं था। उस समय देश में कॉलिंग बेस्ट 2G नेटवर्क ही था। जो कि इस कवच तकनीक को चलाने के लिए काफी नहीं था।

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