भारत में 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर संसद में बहस शुरू हो गयी है. सरकार इस योजना को लागू करने के पक्ष में है, जबकि विपक्ष इसे विरोध कर रहा है.
पहले संसद के बाहर अब संसद के अंदर ' वन नेशन वन इलेक्शन ' को लेकर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इसके पक्ष में है, साथ ही NDA कुनबे में शामिल लगभग सभी सहयोगी दलों का बीजेपी को समर्थन है. वहीं कांग्रेस खुलकर 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का विरोध कर रही है, कांग्रेस के साथ सपा, आरजेडी, AAP और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी विरोध कर रही हैं.
दरअसल, 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाए, यानी वोटर्स लोकसभा और विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन में अपना वोट डालेंगे. सरकार का कहना है कि 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से सरकार का कामकाज आसान हो जाएगा. देश में बार-बार चुनाव होने से काम अटकता है. क्योंकि चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता लागू हो जाती है. जिससे परियोजनाओं में देरी होती है और विकास कार्य प्रभावित होते हैं. वहीं लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ होने से सरकार नीति निर्माण और उसके अमल पर ज्यादा ध्यान दे पाएगी. यही नहीं, दावा किया जा रहा है कि एक बार चुनाव कराने से लागत कम होगी और संसाधन भी कम लगेंगे. जो पैसे बचेंगे और देश के विकास में खर्च किया जाएगा. Advertisementरिपोर्ट की मानें तो भारत में 1952 से 2023 तक प्रतिवर्ष औसतन 6 चुनाव हुए. यह आंकड़ा सिर्फ लोकसभा और विधानसभा के लिए बार-बार होने वाले चुनावों का है. वहीं अगर स्थानीय चुनावों को शामिल कर लिया जाए तो प्रतिवर्ष चुनावों की संख्या कई गुणा बढ़ जाएगी. तर्क है कि एक साथ चुनाव से खासकर विधानसभा चुनावों में सरकार, उम्मीदवारों और पार्टियों अलग-अलग खर्चा होता है, वो सब कम हो जाएगा. एक साथ चुनाव कराने से वोटर्स के रजिस्ट्रेशन और वोटर लिस्ट तैयार करने का काम आसान हो जाएगा. एक ही बार में ठीक से इस काम को अंजाम दिया जा सकेगा. कम चुनाव होने से राज्यों पर भी वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा.विपक्ष का तर्क...- भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' को लागू करने में कई चुनौतियां और खामियां हैं. खासकर कांग्रेस का तर्क है कि भारत जैसे विशाल देश में ये संभव नहीं है, क्योंकि हर राज्य की अलग चुनौतियां और उसके मुद्दे है
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