विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है

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विकासशील देशों पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है
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जलवायु परिवर्तन से विकासशील देशों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है, जिसके कारण उन्हें स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरूरी सेवाओं पर खर्च करने की बजाय कर्ज चुकाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। 2022 में क्‍लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 28% उन्‍हें ग्रांट के रूप में दिया गया। बाकी कर्ज के तौर पर मिला। COP29 में अमीर देशों ने 2035 तक विकासशील देशों को सालाना 300 अरब डॉलर देने का वादा किया, लेकिन यह रकम 2022 में विकासशील देशों की ओर से चुकाए गए 443.5 अरब डॉलर के कर्ज से बहुत कम है।

नई दिल्‍ली: भारत सहित विकासशील देश ों पर जलवायु परिवर्तन का आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। इसके चलते वे स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरूरी सेवाओं पर खर्च करने के बजाय कर्ज चुकाने पर मजबूर हैं। 2022 में क्‍लाइमेट फाइनेंस का सिर्फ 28% उन्‍हें ग्रांट के रूप में दिया गया। बाकी कर्ज के तौर पर मिला। इससे इन देशों पर कर्ज का भारी बोझ बढ़ गया। COP29 में अमीर देश ों ने 2035 तक विकासशील देश ों को सालाना 300 अरब डॉलर देने का वादा किया। लेकिन, यह रकम 2022 में विकासशील देश ों की ओर से चुकाए गए 443.

5 अरब डॉलर के कर्ज से बहुत कम है। भारत इस डील को लेकर अमीर देशों की बख‍िया उधेड़ चुका है। वह इस रकम को नाकाफी बता चुका है। यह भी साफ नहीं है कि इस रकम का कितना हिस्सा अनुदान और कितना कर्ज के रूप में दिया जाएगा। इससे विकासशील देशों, विशेषकर जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्‍यादा प्रभावित देशों की चिंता बढ़ गई है। वे कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं। इससे उनकी अर्थव्यवस्था और जनता का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। इस समस्या का समाधान अनुदानों की संख्या बढ़ाना, कर्जों को आसान बनाना और कर्ज-मुक्ति के...

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