विष्णु नागर का व्यंग्य: महामानव को शिकायत, लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं!

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विष्णु नागर का व्यंग्य: महामानव को शिकायत, लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं!
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आप अपना मज़ाक उड़वाने का नया मसाला लेकर आ गए। गुजरात में आप कह आए कि हम अगले एक हजार साल के विकास की तैयारी कर रहे हैं।

अभी सोमवार को माननीय रोते हुए पाए गए कि लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं। बिलकुल उड़ाते हैं और रोज उड़ाते हैं, बल्कि पल -पल उड़ाते हैं और उड़ाना भी चाहिए और आगे भी उड़ाते रहेंगे। यह उनका लोकतांत्रिक दायित्व है और अधिकार भी कि लोग अपने शासकों को उनकी बुद्धि और ताकत की सीमाएं समय- समय पर बताते रहें, उन्हें उनकी असली जगह दिखाते रहें। वे इशारे में न समझें तो उनका कान पकड़ कर उन्हें समझाएं, बताएं, ताकि वे सत्ता पाकर इतने मदमस्त न हो जाएं कि लोगों के सिर काटते जाएं और लोग चुपचाप कटवाते जाएं। वे झुकाते जाएं...

इतिहास में इतना 'बुद्धिमान 'शासक मुझे एक ही याद आता है और वह था हिटलर, जिसने इनकी तरह हास्यास्पदता की आखिरी हदों को छूते हुए ऐसी ही बात कही थी! वह जर्मन राष्ट्रीयता को पूर्णता तक पहुंचाने के लिए एक हजार साल तक राज करने का सपना देख रहा था मगर बेचारा बारह साल में ही धराशाई हो गया। जीवन के इस पार से उस पार चला गया। अपनी जान खुद लेने के लिए वह बाध्य हो गया। जिसने अपने देश और जर्मन जाति को तबाह कर दिया, वह और उसकी मूर्खता आपका आदर्श कैसे हो सकती है महामानव जी! वैसे भी यह भारत है और यह...

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